फ़ेसबुक सोशल मीडिया का सबसे बड़ा नाम है. ये कंपनी अपने प्लेटफ़ॉर्म पर फ़ैल रही भ्रामक जानकारियों और लोगों के प्रति नफ़रत से भरे कॉन्टेंट को नज़रंदाज़ करने की कई रिपोर्ट्स के चलते बार-बार घेरे में आती रही है. बीते महीने आई बज़फ़ीड की एक रिपोर्ट बताती है कि फ़ेसबुक “ऐसे सबूतों को या तो नज़रंदाज़ करता रहा या उनपर काम करने में तेज़ी नहीं दिखाई जो ये साबित कर रहे थे कि उसके प्लेटफ़ॉर्म पर मौजूद तमाम फ़ेक अकाउंट्स ने दुनिया भर के चुनावों को प्रभावित किया है.”

द वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) की एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट के बाहर आने के कुछ ही दिन बाद ये बातें सामने आयीं थीं. द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट फ़ेसबुक की पब्लिक पॉसिली डायरेक्टर आंखी दास पर केन्द्रित थी जिनके बारे में मालूम चला कि वो प्रधानमंत्री मोदी को सपोर्ट करती हैं और विरोधी पार्टियों की उपेक्षा करती हैं. इसे पहले WSJ की एक और रिपोर्ट में मालूम चला था कि आंखी दास ने “ऐसे हिंदूवादी व्यक्तियों और ग्रुप्स, जिनकी हिंसा फैलाने या उसे बढ़ावा देने के लिए फ़ेसबुक ने आंतरिक रूप से पहचान की थी,” पर फ़ेसबुक के हेट स्पीच के नियम लागू नहीं किये और उनपर रोक नहीं लगाई.

बीते वर्ष, 2019 में, सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को सहूलियत दिए जाने के भी कई संकेत मिले थे. लोक सभा चुनावों से ठीक पहले फ़ेसबुक ने ऐसे हज़ारों अकाउंट्स और ग्रुप्स को हटाया था जो उनके अनुसार ‘एकजुट होकर अमानवीय व्यवहार’ कर रहे थे. लेकिन इस दौरान फ़ेसबुक ने ऐसे कई भाजपा से जुड़े पेजेज़ का नाम नहीं लिया जिनके फ़ॉलोवर्स की संख्या काफ़ी ज़्यादा थी.

फ़ेसबुक पर फैल रही भ्रामक जानकारियों की समस्या कोई छोटी-मोटी नहीं है. ऐसे कितने ही रेगुलर फ़ेसबुक यूज़र्स हैं जो कि भावनाओं के वश में आकर फ़र्ज़ी दावों/जानकारियों को सच मान बैठते हैं और फिर जाने-अनजाने उन्हें फैलाने का काम भी करते हैं.

भ्रम की स्थिति पैदा करने वाली, ग़लत सन्देश देने वाली खबरें या खुले तौर पर बोला जा रहा झूठ कई वजहों से फैलाया जाता है. इसमें किसी दूसरे समूह को नीचे करते हुए खुद को ऊपर दिखाने की चाह सबसे बड़ी वजह है. लेकिन फ़ेसबुक राजनीतिक भाषणों को फ़ैक्ट चेक करने में पीछे रहता है क्यूंकि इसका कहना है कि ये वो चीज़ है जो कि मीडिया की जांच के दायरे में सबसे ज़्यादा आता है.

फ़ेसबुक दुनिया भर में इंडिपेंडेंट थर्ड-पार्टी फ़ैक्ट चेकर्स के भरोसे रहता है. इसमें 8 भारत में हैं. फ़ेसबुक के अनुसार, इसका मकसद है “मीम्स या छेड़छाड़ के शिकार फ़ोटोज़/वीडियो के रूप में ग़लत ख़बरों और बाकी नाना प्रकार की भ्रामक जानकारियों को फैलने से रोकना.”

ऑल्ट न्यूज़ ने बीते साल में फ़ेसबुक के भारतीय फ़ैक्ट चेकिंग पार्टनर्स द्वारा पब्लिश की गईं रिपोर्ट्स को देखा. हमने ये समझा कि अगस्त 2019 से अगस्त 2020 के बीच, दो समूहों को छोड़कर किसी ने भी ऐसे व्यक्तियों या संगठनों का नाम नहीं लिया जिनका नाम भ्रामक जानकारियां फैलाने में सबसे ज़्यादा आता है.

फ़ेसबुक के अधिकतर भारतीय फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर्स ने BJP द्वारा फैलाई जा रही ग़लत जानकारियों को सतही तौर पर छुआ भर है

भारत में फ़ेसबुक के कुल 8 फ़ैक्ट चेकिंग पार्टनर्स हैं – AFP, बूमलाइव, द क्विंट, इंडिया टुडे, फ़ैक्टली, फ़ैक्ट क्रेसेंडो, न्यूज़ मोबाइल और विश्वास न्यूज़.

ऑल्ट न्यूज़ ने ऐसे 5 सोर्सेज़ को चिन्हित किया जो हमारी लिस्ट में गलत जानकारियां फैलाने के मामले में सबसे ऊपर आते हैं –

1. भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय
2. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा
3. पाकिस्तानी कनेडियन लेखक तारिक फ़तेह
4. सुदर्शन न्यूज़ या इसके एडिटर इन चीफ़ सुरेश चव्हानके
5. ऑप इंडिया.

हमने अगस्त 2019 से अगस्त 2020 के बीच इनके ग़लत जानकारी रखने वाले पोस्ट्स को फेसबुक के फ़ैक्ट चेकिंग पार्टनर्स द्वारा पब्लिश की गयी स्टोरीज़ के सामने रखकर देखा. इनका ऑल्ट न्यूज़ पर की गयी फ़ैक्ट चेक रिपोर्ट्स से भी मिलान किया गया.

हमारी एनालिसिस में हमें मालूम चला कि बूमलाइव और द क्विंट के सिवा और किसी ने भी ऊपर बताये गए गलत जानकारियों के 5 सोर्सेज़ के बारे में रिपोर्ट्स लिखने से या तो पूरी तरह से खुद को बचाया है या बेहद कम रिपोर्ट्स लिखी हैं.

यहां इस बात पर ज़रूर गौर किया जाए कि इन लोगों या संगठनों द्वारा किये गए सभी ग़लत दावे फ़ेसबुक पर ही नहीं करते हैं. मगर, चूंकि ये अच्छी-खासी पहुंच रखने वाले लोग हैं और इन्हें फ़ॉलो करने वालों की भी कमी नहीं है, इसलिए इनके द्वारा किये गए ये दावे बेहद तेज़ी के साथ फ़ेसबुक समेत सभी जगहों पर फैलते हैं. ग़लत जानकारी या तो जैसी की तैसी परोसी जाती है या फिर कई बार स्क्रीनशॉट्स के रूप में. इसलिए इसकी जांच होनी बेहद ज़रूरी होती है.

मगर, फ़ेसबुक की पॉलिसी के अनुसार, राजनेताओं द्वारा कही गयी कोई भी बात थर्ड-पार्टी फ़ैक्ट चेकर्स द्वारा रिव्यू किये जाने के दायरे में नहीं आती है. मसलन, बीते वर्ष अमित मालवीय ने लखनऊ में हुई ऐंटी-सीएए रैली का एक वीडियो शेयर किया था जिसके बारे में उन्होंने दावा किया की उसमें ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ के नारे लगे थे. ये दावा पूरी तरह से ग़लत था. प्रदर्शनकारी ‘काशिफ़ साहब ज़िन्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे क्यूंकि AIMIM के नेता काशिफ़ अहमद इस रैली का नेतृत्व कर रहे थे. जिस एकमात्र फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर ने इस दावे का सच बताने की ज़हमत उठायी, उसने अपनी रिपोर्ट में कहीं भी अमित मालवीय का ज़िक्र तक नहीं किया. संबित पात्रा ने भी कई मौकों पर लोगों के बयान को पूरी तरह से ग़लत रोशनी में पेश किया है. उनके ट्वीट में राहुल गांधी का एक क्लिप किया हुआ वीडियो मिलता है जिसके ज़रिये वो कोविड के रेड ज़ोन और ग्रीन ज़ोन के बारे में बात कर रहे राहुल गांधी को मज़ाक का पात्र बनाने की कोशिश करते हैं. इस वीडियो को, ग़लत दावे के साथ कितने ही लोगों ने फैलाया लेकिन फ़ेसबुक के फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर्स ने इसे रिपोर्ट करने लायक नहीं समझा.

यहां इस बात को सामने रखना ज़रूरी है कि लगभग हर राजनीतिक पार्टी या उसके सपोर्टर को ग़लत जानकारियां शेयर करते हुए देखा गया है. लेकिन भाजपा से जुड़े लोग भारी मात्रा में ऐसा करते आये हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से जुड़े लोग हमारी लिस्ट में इसलिए जगह नहीं बना सके क्यूंकि इस टाइम फ़्रेम में उन्होंने बेहद कम गलत जानकारियां शेयर की थीं. मगर फिर भी कुछ और नाम हैं जिनका ज़िक्र ज़रूर किया जाना चाहिए – मधु कीश्वर, ऋषि बागरी, प्रशांत पटेल उमराव, संजय दीक्षित और गौरव प्रधान. हालांकि, कॉन्टेंट के इम्पैक्ट और उसकी मात्रा को ध्यान में रखते हुए, ये लोग इस एनालिसिस का हिस्सा नहीं बनाए गए हैं.

इंडिया टुडे

अगस्त 2019 से अगस्त 2020 के बीच, इंडिया टुडे ने अमित मालवीय, सुदर्शन न्यूज़/सुरेश चव्हाणके और ऑप इंडिया द्वारा फैलाई गयी ग़लत जानकारियों पर मात्र 1 रिपोर्ट पब्लिश की. इसके बनिस्बत, बूम लाइव ने अमित मालवीय पर 7 और बाकी दोनों पर 5-5 स्टोरीज़ पब्लिश की हैं. वहीं, द क्विंट ने 14 स्टोरीज़ पब्लिश की हैं जो कि ऑप इंडिया पर हैं और ऑल्ट न्यूज़ ने ऐसी कुल 35 ख़बरें पब्लिश की हैं.

फ़ेसबुक के साथ फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर बनने के लिए संगठनों को इंटरनेशनल फ़ैक्ट चेकिंग नेटवर्क (IFCN) द्वारा प्रमाणित होना पड़ता है. इन आउटलेट्स को IFCN के सभी मापदंडों पर खरा उतरना पड़ता है जिसमें पक्षपाती न होना और तथ्यात्मक गलतियों की गैरमौजूदगी शामिल है. इंडिया टुडे और उसके हिंदी साथी चैनल आज तक ने कई मौकों पर ग़लत दावे पेश किये हैं. हमने कितने ही मौकों पर देखा है कि वो फ़ेक ट्विटर हैंडल्स और मनगढ़ंत कहानियों के झांसे में आये हैं. लेकिन लगभग सभी मौकों पर अपनी गलतियों पर न ही इस समूह ने सफ़ाई पेश की है और न ही अपनी गलतियों की असलियत सामने रखी है.

विश्वास न्यूज़

ये एक और आउटलेट है जिसपर नज़र बनाए रखने की ज़रूरत है. विश्वास न्यूज़ उसी जागरण मीडिया नेटवर्क का हिस्सा है जिसपर दैनिक अख़बार ‘दैनिक जागरण’ का मालिकाना हक़ है. बीते साल में विश्वास न्यूज़ ने ऐसे किसी भी आर्टिकल को अपने प्लेटफ़ॉर्म पर जगह नहीं दी है जिसमें अमित मालवीय, तारिक फ़तेह, सुदर्शन न्यूज़/सुरेश चव्हानके और ऑप इंडिया द्वारा फैलाई गयी ग़लत जानकारियों का ज़िक्र आया हो. इन्होंने एक रिपोर्ट छापी है जिसमें संबित पात्रा द्वारा फैलाई गयी 2 अलग-अलग गलत जानकारियों की सच्चाई बताई गयी है. (पहली रिपोर्ट, दूसरी रिपोर्ट) तारिक फ़तेह को टारगेट करती हुई एक ग़लत जानकारी का सच उन्होंने ज़रूर छापा है जिसमें उन्होंने तारिक फ़तेह के बारे में ऐसी कोई भी टिप्पणी नहीं की है जो उन्हें भी ग़लत जानकारियां फैलाने वाला बताये. अगस्त 2019 से अगस्त 2020 के बीच ऑल्ट न्यूज़ ने 18 और बूम लाइव ने 12 ऐसी ख़बरें दिखाई हैं जहां तारिक फ़तेह को गलत दावे करते हुए देखा जा सकता है. ऑल्ट न्यूज़ और बूम लाइव ने तारिक फ़तेह द्वारा शेयर की गयी गलत जानकारियों को संकलित भी किया है.

न्यूज़ मोबाइल

न्यूज़ मोबाइल के केस में हमने एक मज़ेदार ट्रेंड देखा. जहां इन्होने सिर्फ़ एक पोस्ट में संबित पात्रा के ग़लत दावे की सच्चाई सामने रखी वहीं संबित को टार्गेट करने वाली 4 स्टोरीज़ को फ़ैक्ट-चेक किया. चारों मौकों पर एडिट की हुई तस्वीरों का मामला था. (पहली स्टोरी, दूसरी स्टोरी, तीसरी स्टोरी, चौथी स्टोरी)

This slideshow requires JavaScript.

बाकी सभी आउटलेट्स

AFP और फ़ैक्टली ने भी गलत जानकारियां फैलाने वालों में सबसे बड़े नामों को नज़र फेरकर छोड़ दिया है. लेकिन इनके फ़ैक्ट चेकिंग का तरीका बाकी संगठनों से काफ़ी अलग दिखाई देता है. ये अपनी रिपोर्ट्स में बेहद कम मौकों पर किस व्यक्ति या संगठन का नाम लेते हैं. यहां तक कि फ़ैक्टली को वायरल दावों और उनके सच पर बेहद कम शब्दों में फ़ैक्ट चेक्स पब्लिश करने के लिए जाना जाता है.

फ़ैक्ट क्रेसेंडो ने भी सवालों के घेरे में खड़े भ्रामक जानकारियों के सोर्सेज़ के कॉन्टेंट को यदा कदा ही फ़ैक्ट-चेक किया है.

हमने कई बार इंडिया टुडे, विश्वास न्यूज़ और न्यूज़मोबाइल से बात करने की कोशिश की लेकिन हमारी किसी भी रिक्वेस्ट पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. हमने फ़ेसबुक से भी ईमेल के माध्यम से बात करने की कोशिश की लेकिन हमें उसी घिसी-पिटी तर्ज पर खानापूर्ति करने वाले जवाब मिले जो कि हमारे बेहद सीधे सवालों के किसी भी हिस्से को संबोधित नहीं करते दिख रहे थे. फ़ेसबुक के जवाब के एक हिस्से का हिंदी तर्जुमा हम आपके सामने रख रहे हैं : “फ़ेसबुक का फ़ैक्ट-चेकिंग प्रोग्राम तकनीक और इंसानी रिव्यू के इस्तेमाल से ग़लत ख़बरों का पता लगाता है और उन्हें रोकता है. हम फ़ेसबुक पर मौजूद लोगों के सिगनल और फ़ीडबैक की मदद से ग़लत ख़बरों का अनुमान लगाते हैं जिन्हें बाद में हमारे फ़ैक्ट चेकर्स रिव्यू करते हैं. जैसे ही फ़ैक्ट-चेकर्स किसी स्टोरी को ग़लत ख़बर का दर्जा देते हैं, हम उसकी पहुंच को कम करना शुरू करते हैं और कांटेक्स्ट के साथ वॉर्निंग लेबल जोड़ देते हैं. इसके साथ ही हम लोगों को भी ये ताक़त देते हैं कि उन्हें क्या पढ़ना है, किस बात पर विश्वास करना है और क्या शेयर करना है, इसका फ़ैसला वो अपने विवेक से लें. जब थर्ड-पार्टी फ़ैक्ट चेकर्स किसी न्यूज़ स्टोरी के बारे में आर्टिकल्स लिखते हैं, हम उन्हें न्यूज़ फ़ीड में शामिल स्टोरीज़ के ठीक नीचे दिखाते हैं. जब भी कोई पेज ग़लत जानकारी शेयर करता है, या उसकी पहले शेयर की हुई कोई जानकारी ग़लत पायी जाती है तो हम पेज ऐडमिन्स को इस बात का नोटिफ़िकेशन भी भेजते हैं.”

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.

Tagged:
About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.