एक वीडियो में कुछ पैनलिस्ट बैठे हैं जो दावा कर रहे हैं कि दुनिया कोरोना वायरस महामारी से नहीं जूझ रही है. वीडियो शेयर करते हुए लिखा जा रहा है, “ब्रेकिंग न्यूज़: डबल्यू.एच.ओ ने अपनी गलती मानी पूरी तरह से यू-टर्न लेते हुए कहा है कि कोरोना एक सीजननल वायरस है यह मौसम बदलाव के दौरान होने वाला खांसी जुकाम गला दर्द है इससे घबराने की जरूरत नहीं. डब्ल्यू.एच.ओ अब कहता है कि कोरोना रोगी को न तो अलग रहने की जरूरत है और न ही जनता को सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत है. यह एक मरीज से दुसरे व्यक्ति में भी संचारित नहीं होता. देखिये WHO की प्रैस कांफ्रेंस.”

ये वीडियो पिछले साल से शेयर किया जा रहा है.

 

Breaking news:
WHO has completely taken a U-turn and now says that Corona patient neither needs to be isolated, nor quarantined, nor needs social distancing and it cannot even transmit from one patient to another.

Toh kya apni MC ne k liye itna sab nautanki ki gayi😡

Na baap bada na bhaiya
Sabse bada rupaiya🖕

Posted by Sunny Lamba on Tuesday, October 27, 2020

ऑल्ट न्यूज़ को इसे वेरिफ़ाई करने के लिए व्हाट्सऐप (+91 76000 11160) पर कई रिक्वेस्ट भेजी गयीं.

एक अन्य पोस्ट में वीडियो में दिख रहे लोगों को ‘यूरोपियन डॉक्टरों का समूह’ बताया गया.

दावे:

1. WHO ने अब यू-टर्न लेते हुए कहा है कि मरीज़ों को न ही खुद को अलग करने की ज़रूरत है और न ही क्वारंटीन. यही नहीं, उन्हें सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) का पालन करने की भी आवश्यकता नहीं है.

2. हम महामारी जैसी स्थिति में नहीं हैं.

3. कोरोना वायरस सामान्य फ़्लू वायरस है.

4. ग़लत पीसीआर टेस्ट करके बौखलाहट पैदा की गयी. 89% से लेकर 94% तक के PCR टेस्ट फ़र्ज़ी हैं. वो कोविड-19 की जांच ही नहीं करते और जो बाकी के नेगेटिव परिणाम आते हैं वो भी फ़र्ज़ी होते हैं.

5. आयरलैंड में अप्रैल 2020 तक एक भी मौत नहीं हुई थी. 2020 में 50 लाख की जनसंख्या वाले देश में केवल 98 मौतें हुईं.

6. मास्क की ज़रूरत नहीं है और ये हमारे संवैधानिक अधिकारों का हनन भी है.

7. कोविड-19 के लिए वैक्सीन लगवाने की कोई ज़रूरत नहीं है.

सच्चाई:

ऊपर लिखे सभी दावे ग़लत हैं.

फ़ैक्ट-चेक

1. वीडियो में WHO के पैनलिस्ट नहीं, WHO मरीज़ों को आइसोलेट होने की सलाह देता है

वीडियो की शुरुआत में बोल रही महिला खुद को नीदरलैंड्स की चिकित्सक एल्की डी कर्क बता रही हैं. एल्की ‘डॉक्टर्स फ़ॉर ट्रूथ’ की संस्थापक हैं. वीडियो में दिख रहे पैनलिस्ट ‘विश्व चिकित्सक गठबंधन (World Doctors Alliance)‘ का हिस्सा हैं जो खुद को बतौर NGO प्रस्तुत करता है. ये समूह कोरोना वायरस और मेडिकल से जुड़ी अन्य कॉन्स्पिरेसी थ्योरी (साज़िश की कहानियां) फ़ैलाने के लिए बदनाम है.

वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायन्स की वेबसाइट पर बताया गया है कि इसकी स्थापना ब्रिटिश-पाकिस्तानी डॉक्टर मोहम्मद आदिल ने की थी. आदिल लगातार कोरोना महामारी को साज़िश बता रहे थे. इसके बाद जनरल मेडिकल काउंसिल ऑफ़ यूके ने मोहम्मद आदिल का लाइसेंस निरस्त कर दिया था. इसी संगठन से जुड़े एक अन्य डॉक्टर, हेइको शोनिंग को लन्दन में मास्क लगाने के खिलाफ़ भाषण देने के लिए गिरफ़्तार किया गया था.

वीडियो में दिख रहे पैनलिस्ट में से कोई भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का हिस्सा नहीं है. WHO द्वारा यू-टर्न लिए जाने और कोरोना मरीज़ों को आइसोलेट या क्वारंटीन होने से मना करने के वाले फ़र्ज़ी दावों का पहले भी फ़ैक्ट-चेक चेक किया जा चुका है.

[पढ़ें: ‘बिना लक्षण वाले मरीज़ों से नहीं फैलता कोरोना’, अब WHO ऐसा कोई दावा नहीं करता]

इसके उलट, WHO ने कहा था कि बिना लक्षण वाले मरीज़ों को भी क्वारंटीन होना चाहिए. WHO ने कहा था, “जिन लोगों में लक्षण नहीं हैं, वो वायरस फैला सकते हैं, भले वो बीमार महसूस कर रहे हों या नहीं. इसीलिए संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए मास्क पहनना और दूरी बनाए रखना ज़रूरी है.”

2. विश्व वाकई एक महामारी से जूझ रहा है

WHO के मुताबिक महामारी की परिभाषा है, ‘पूरे विश्व में एक नयी बीमारी का फैलना’. जॉन हॉपकिन्स कोविड ट्रैकर के मुताबिक पूरे विश्व में कोरोना के मामले 17 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुके हैं. इस महामारी से वही चंद छोटे देश बच पाए जो अलग-थलग हैं. लेकिन इस महामारी के आर्थिक प्रभाव से वो भी अछूते नहीं दिख रहे. विश्व का ज़्यादातर हिस्सा महामारी झेल रहा है और कई देश अभी भी गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं.

3. कोविड-19 सामान्य फ़्लू नहीं है

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, “कोरोना वायरस (CoV), वायरस के उस वंशज का ही व्यापक हिस्सा है जो आम ज़ुकाम से लेकर गंभीर MERS-CoV और SARS-CoV का कारण बनते हैं.”

नॉवेल कोरोना वायरस, कोरोना वायरस परिवार का ही एक स्ट्रेन है. ये असामान्य लक्षण वाला वायरस है जिसे पहले कभी नहीं देखा गया था. इसके लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर गंभीर स्तर तक पहुंच जाते हैं जो जानलेवा भी हो सकते हैं. गंभीर मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती करने, ICU में रखने और ऑक्सीजन या वेंटीलेटर तक की ज़रूरत पड़ सकती है. जैसा कि भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर में देखा गया, हज़ारों लोग बीमार पड़े और कई लोगों की ऑक्सीजन कमी से मौत हो गयी. वहीं कोविड-19 के मुकाबले सामान्य ज़ुकाम जानलेवा नहीं होता है.

ऑल्ट न्यूज़ के 25 मार्च, 2020 के एक साइंस फ़ैक्ट-चेक आर्टिकल में डॉक्टर सरफ़रोज़ ने लिखा था, “जब भी कोई कोरोनावायरस (या राइनोवायरस) ज़ुकाम का कारण बनता है, तो फ़िज़ीशियन पहले दूसरों तक संक्रमण फैलने से रोकते हैं और फिर लक्षणों का इलाज करते हैं.” चूंकि सामान्य ज़ुकाम खुद नियंत्रित हो जाता है, लोग खुद ही ठीक हो जाते हैं. यही कारण है कि सामान्य ज़ुकाम में ऐंटीवायरल या ऐंटीबायोटिक नहीं दिया जाता है. आमतौर पर सामान्य ज़ुकाम किस जीव की वजह से हुआ ये जानने का प्रयास भी नहीं किया जाता क्योंकि इससे इलाज पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता.

4. PCR टेस्ट में ग़लत परिणामों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया

कोरोना वायरस का पता लगाने के लिए सबसे जाना-माना टेस्ट RT-PCR और RAT है. वायरल वीडियो में पैनलिस्ट दावा करते हैं कि PCR टेस्ट में 89% से 94% पॉज़िटिव परिणाम ग़लत हैं. हालांकि, परिणाम ग़लत आने की मामूली संभावनाएं ज़रूर होती हैं, लेकिन इतने बड़े स्तर पर नहीं जैसा बताया जा रहा है.

मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज के एमडी, एमबीबीएस, डॉक्टर निकेत राय ने पिछले साल एक आर्टिकल में बताया था, “SARS COV 2 टेस्ट के लिए RT-PCR टेस्ट में नाक या गले से लिए गए नमूने (स्वाब) की जांच 98% सटीक है. यानी, 100 नमूने का टेस्ट करने पर केवल 2 के परिणाम फ़ॉल्स पॉज़िटिव (नेगेटिव होने के बावजूद पॉज़िटिव आना) आते हैं.” यहां बता दें कि सटीक का मतलब नेगेटिव मामले का परिणाम नेगेटिव ही आना होता है. CBC ने विशषज्ञों के हवाले से बताया था कि RT-PCR आमतौर पर फ़ॉल्स पॉज़िटिव नतीजा नहीं देता और इसलिए इसे ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ माना जाता है.

विशेषज्ञों को फ़ॉल्स नेगेटिव (पॉज़िटिव होने के बावजूद नेगेटिव परिणाम) की ज़्यादा चिंता सता रही है. CBC के मुताबिक, “पिछले साल एक शोध में पाया गया था कि पहले दिन टेस्ट कभी सही परिणाम नहीं देते हैं. इसकी बजाय आठवें दिन सबसे सही परिणाम दर्ज किये जाते हैं, लेकिन उसमें भी 20 फीसदी तक फ़ॉल्स-नेगेटिव आने की आशंका होती है. अध्ययन में पाया गया कि आठवें दिन के बाद फ़ॉल्स नेगेटिव रिपोर्ट्स की दर और बढ़ती है.” हालांकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि RT-PCR टेस्ट फ़ॉल्स-नेगेटिव परिणाम ज़्यादा देते हैं, लेकिन पैनल (वायरल वीडियो में) ने आंकड़ों को बेहद बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया है.

डॉ. निकेत राय ने कहा, “नाक या गले से लिए नमूनों में RT-PCR टेस्ट 85% तक संवेदनशील है. यानी, 100 सैंपल में 85 का रिज़ल्ट पॉज़िटिव आता है. ऐसा हो सकत है कि बाकी 15 में वायरस हो लेकिन RT-PCR की पकड़ में न आये (फ़ाल्स नेगेटिव).” उन्होंने सलाह दी कि अगर मरीज़ को लगता है कि उसका रिज़ल्ट ग़लत आया है तो उसे दोबारा टेस्ट करा लेना चाहिए.

5. आयरलैंड में कोरोना से करीब 5,000 लोगों की मौत हुई है

वायरल वीडियो में पैनलिस्ट ने कहा कि आयरलैंड में अप्रैल 2020 तक कोरोनावायरस से एक भी मौत नहीं हुई. लेकिन WHO के कोविड-19 डैशबोर्ड के अनुसार आयरलैंड में अप्रैल 2020 तक 200 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी. आयरलैंड में 3 जून, 2021 तक कोरोना के 2 लाख, 61 हज़ार 872 मामले दर्ज किये जा चुके थे और 4,941 लोगों की मौत हो चुकी थी. यहां बीते दो हफ़्तों में एक भी मौत नहीं हुई.

6. संक्रमण फ़ैलने से रोकने में मास्क कारगर

ऑल्ट न्यूज़ साइंस की फ़ाउंडर डॉक्टर सुमैया शेख ने पिछले वर्ष बताया था, “कोरोना वायरस छोटे-छोटे झुंड में मास्क को पार कर सकता है, और आंखों के ज़रिये भी शरीर में प्रवेश कर सकता है. लेकिन संक्रमित व्यक्ति अगर मास्क पहने तो इससे उसके मुंह से निकलने वाली वायरस युक्त बूंदें हवा में फैलने से बच सकती हैं. कोरोना वायरस और ऐसे अन्य वायरस जो श्वसन तंत्र को संक्रमित करते हैं, वो मुख्यतः हवा के ज़रिये ही फैलते हैं.”

WHO की मास्क को लेकर गाइडलाइन यहां पढ़ें.

CDC के मुताबिक, जो लोग वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवा चुके हैं, केवल वही मास्क के बिना रह सकते हैं. और यही बात स्वास्थ्य अधिकारियों ने गाइडलाइन में बदलाव होने के बाद कही. वहीं, विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि बेशक वैक्सीन लगवा चुके लोग कोरोना नहीं फैलायेंगे, लेकिन उनके मास्क न लगाने से और भी लोग ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार करना शुरू कर सकते हैं. चूंकि, किसी को देखकर पता नहीं चलता कि उसे वैक्सीन लग चुकी है या नहीं, इसलिए हर्ड इम्युनिटी पहुंचने तक मास्क न लगाना उन लोगों के लिए ख़तरनाक होगा जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है.

7. वैक्सीन गंभीर रूप से बीमार पड़ने से बचाती है

ये वायरल हो रहा वीडियो 10 अक्टूबर, 2020 को बर्लिन में रिकॉर्ड किया गया था. उस वक़्त तक टीकाकरण शुरू भी नहीं हुआ था. लेकिन वैक्सीन लगाने की शुरुआत को अब कुछ महीने बीत चुके हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक वैक्सीन संक्रमण होने और गंभीर रूप से बीमार होने, दोनों से बचाता है. इसके अलावा, जिन लोगों को वैक्सीन की पूरी डोज़ लग चुकी है उनके संक्रमण फैलाने की संभावनाएं बेहद कम हो जाती हैं. CDC के मुताबिक, “कोविड-19 वैक्सीन आपको बिना बीमार किये, आपके शरीर में ऐंटीबॉडी (इम्यून सिस्टम) प्रतिक्रिया तैयार करती है.”

इसके अलावा गावी (GAVI) ने भी कहा है कि वैक्सीन संक्रमण फ़ैलने से रोकती है लेकिन अभी और अध्ययन किये जा रहे हैं ताकि ये समझा जा सके कि “वैक्सीन का असर कितने समय तक रहेगा और अगर बूस्टर शॉट लगाने की ज़रूरत पड़ती है तो कितने समय में.” लेकिन जिन लोगों को वैक्सीन नहीं लगी उनकी सुरक्षा को देखते हुए सतर्कता बरतने की सलाह दी जाती है.

कोरोना की दूसरी लहर के बीच ‘वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायन्स’ का एक साल पुराना वीडियो दोबारा शेयर किया जा रहा है. इस वीडियो में मनगढ़ंत दावे किया जा रहे हैं जिसे कई न्यूज़ आउटलेट्स, विशेषज्ञ और संगठन ख़ारिज कर चुके हैं.


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Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.