मार्च 2020 में मेटा (पहले फ़ेसबुक) ने ‘ग़लत सूचनाओं के प्रसार को कम करने और यूज़र्स को ज़्यादा विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने के लिए’ इंटरनेशनल फ़ैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (IFCN, 2015 में US नो-प्रॉफ़िट पॉयन्टर इंस्टीट्यूट द्वारा स्थापित) के साथ पार्टनरशिप की घोषणा की. अगस्त 2022 में अमेरिकी पॉडकास्टर जो रोगन के साथ एक इंटरव्यू में मेटा प्लेटफ़ॉर्म के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग ने कहा, “… हम ये तय नहीं करना चाहते हैं कि क्या सच है और क्या ग़लत… हम इस चक्कर में भी नहीं पड़ना चाहते कि कौन सा फ़ैक्ट-चेकर्स प्रोफ़ेशनल हैं और कौन सा नहीं. इसलिए बेसिकली हम इसे (IFCN के बारे में) मान्यता के लिए आउटसोर्स करते हैं… इसका बड़े तौर पर सम्मान किया जाता है. ये एक तरह से सबसे अच्छा है, भले ही आप जानते हैं, ये पूरी तरह सही नहीं है…”

सितंबर 2022 के पहले सप्ताह में IFCN ने घोषणा की कि उसने व्हाट्सऐप पर झूठी और भ्रामक जानकारी के प्रभाव को कम करने के लिए काम करने वाले संगठनों को $450,000 का अनुदान दिया है. 11 पुरस्कार पाने वाले संगठनों में से तीन भारत के थे. विश्वास न्यूज़ उनमें से एक था जिसे 50,000 डॉलर (~40 लाख) मिलें. घोषणा के मुताबिक, विश्वास न्यूज़ का काम ‘उन लोगों के बीच सूचनाओं का पुल बनाना है जो ग़लत सूचनाओं के प्रवाह का सामना कर रहे हैं और ये नहीं जानते कि सच्चाई की जांच कहां और कैसे की जाए.’

विश्वास न्यूज़ जागरण प्रकाशन लिमिटेड की डिजिटल शाखा, MMI ऑनलाइन लिमिटेड की सहायक कंपनी है जो ‘दैनिक जागरण’ अखबार की पैरेंट कंपनी है. दैनिक जागरण की वेबसाइट के मुताबिक, इसकी दैनिक पाठकों की संख्या 50 मिलियन से ज़्यादा है जो भारत में सबसे बड़ी संख्याओं में से एक है. गौरतलब है कि MMI ऑनलाइन लिमिटेड के CEO भरत गुप्ता, IFCN के 11 बोर्ड सदस्यों में से एक हैं.

इस रिपोर्ट में ये विश्लेषण किया गया है कि विश्वास न्यूज़ IFCN आचार संहिता का पालन करता है या नहीं. साथ ही जनवरी 2021 और जुलाई 2022 के बीच इसकी सहयोगी संस्था, दैनिक जागरण द्वारा ग़लत सूचनाओं के डॉक्यूमेंट इंस्टैंस भी दिए गए हैं.

क्या विश्वास न्यूज़ IFCN आचार संहिता का पालन करता है?

IFCN के पास कई सब-पॉइंट्स के साथ पांच कोड ऑफ़ कंडक्ट्स हैं. इस रिपोर्ट से संबंधित सब-पॉइंट्स नीचे दिए गए हैं:

  • कार्यप्रणाली के स्टैंडर्स और ट्रांस्पैरसी के प्रति प्रतिबद्धता

5.2 आवेदक मुख्य रूप से इन दावों की पहुंच और महत्व के आधार पर जांच के लिए इनका चयन करता है और जहां संभव हो जांच के लिए दावे को चुनने की वजह भी बताता है.

  • एक खुली और ईमानदार सुधार नीति के प्रति प्रतिबद्धता

6.5 यदि आवेदक किसी मीडिया कंपनी की फ़ैक्ट-चेक यूनिट है तो ये सिग्नेटरी स्टेटस की रिक्वायरमेंट है कि पैरेंट मीडिया कंपनी के पास एक खुली और ईमानदार सुधार नीति हो.

ऑल्ट न्यूज़़ ने देखा कि विश्वास न्यूज़़ शायद ही कभी ग़लत सूचना के प्राइमरी सोर्सेज जैसे प्रमुख अकाउंट्स या न्यूज़ आउटलेट्स का ज़िक्र करता है. इस तरह ग़लत दावा करने वाले सोशल मीडिया अकाउंट की पहुंच के महत्व को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता है. उदाहरण के लिए –

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दो साल पहले, ऑल्ट न्यूज़़ ने एक रिपोर्ट में ये बताया था कि भारत में ज़्यादातर फ़ेसबुक फ़ैक्ट-चेकिंग पार्टनर भाजपा-समर्थक यूज़र्स/संगठनों द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं का फ़ैक्ट-चेक करने में विफल रहे थे. ऑल्ट न्यूज़़ ने ग़लत सूचना के पांच सोर्सेज़ का हवाला दिया था जो हमारी रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ऊपर थे – बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा, सुदर्शन न्यूज़़ के प्रमुख सुरेश चव्हाणके और ऑपइंडिया.

इस डेटा को ढूंढने के लिए, ऑल्ट न्यूज़़ ने गूगल पर एक डोमेन-स्पेसिफ़िक की-वर्ड्स सर्च किया. यहां, डोमेन फ़ैक्ट-चेकिंग पोर्टल की वेबसाइट होगी और specificHow की-वर्ड्स ग़लत सूचना का सोर्स है. उदाहरण के लिए, साइट: vishvasnews.com “सुरेश चव्हाणके.”

डेटा से पता चलता है कि बूमलाइव, द क्विंट और ऑल्ट न्यूज़़ को छोड़कर, ज़्यादातर फ़ैक्ट-चेकिंग पोर्टल्स ने इन प्लेटफ़ॉर्म्स या ऐसे व्यक्तियों द्वारा झूठे दावे किए जाने या गलत सूचनाएं शेयर किए जाने को एक अलग नज़रिए से देखा. विश्वास न्यूज़ ने अगस्त 2019 और अगस्त 2020 के बीच सिर्फ एक बार उनमें से सिर्फ एक का ज़िक्र किया.

ऑल्ट न्यूज़़ की 2022 ईयर-एंड रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा 2022 में ग़लत सूचना शेयर करने वाले प्रमुख राजनेताओं की सूची में थे.

इसी तरह, पिछले साल गलत सूचना शेयर करने वाले प्रमुख हस्तियों में पाकिस्तानी-कनाडाई लेखक तारेक फतह और सुदर्शन न्यूज़ के संपादक सुरेश चव्हाणके भी शामिल थे.

7 दिसंबर, 2022 को ऑल्ट न्यूज़़ ने पाया कि 20 फ़रवरी, 2023 तक —

  1. विश्वास न्यूज़ ने बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं का डॉक्यूमेंटेशन नहीं किया है
  2. विश्वास न्यूज़ ने सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं का डॉक्यूमेंटेशन नहीं किया है
  3. विश्वास न्यूज़ ने पाकिस्तानी-कनाडाई लेखक तारेक फतह द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं का डॉक्यूमेंटेशन नहीं किया है
  4. विश्वास न्यूज़ ने भाजपा समर्थक प्रोपगेंडा आउटलेट ऑपइंडिया द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं का सिर्फ एक उदाहरण है

पिछले कुछ महीनों में ऑल्ट न्यूज़़ ने विश्वास न्यूज़़ के कई फ़ैक्ट-चेक्स पढ़े और पाया कि उन्होंने कभी भी ग़लत सूचना के प्रमुख सोर्स का ज़िक्र नहीं किया. ये आचार संहिता के उपरोक्त कोड (5.2) का उल्लंघन है. विश्वास न्यूज़, फ़ैक्ट-चेक के लिए ग़लत दावों का चयन करते समय इसकी ‘पहुंच और महत्व’ पर विचार नहीं करता है.

क्या दैनिक जागरण एक खुली और ईमानदार सुधार नीति का पालन करता है?

जनवरी 2021 और जुलाई 2022 के बीच, IFCN सदस्य विश्वास न्यूज़ की सहयोगी संस्था दैनिक जागरण ने हमारे डेटाबेस के मुताबिक, ग़लत सूचना के 17 इंस्टैंस पब्लिश किए. इसी टाइम फ़्रेम में, जागरण की ग़लत सूचनाओं को बूमलाइव ने 7 बार और द क्विंट ने दो बार दर्ज़ किया (स्प्रेडशीट देखें). हमने देखा कि 17 में से कम से कम 6 आर्टिकल सुधार के साथ अपडेट नहीं किए गए थे (जागरण की सुधार की गई स्प्रेडशीट देखें) – हमने ज़्यादा स्पष्टीकरण के लिए दैनिक जागरण से संपर्क करने का प्रयास किया. हालांकि, हमें कोई जवाब नहीं मिला. रिडर्स ध्यान दें कि ऑल्ट न्यूज़़ ये वेरीफ़ाई नहीं कर सका कि दो स्टोरीज़ में सुधार किया गया था या नहीं, क्योंकि वो प्रिंट स्टोरीज़ थीं और ये स्टोरीज़ ऑनलाइन नहीं मिल सकीं.

IFCN आचार संहिता के क्लॉज़ 6.5 में कहा गया है, “यदि आवेदक किसी मीडिया कंपनी की फ़ैक्ट-चेक यूनिट है, तो ये सिग्नेटरी स्टेटस की रिक्वायरमेंट है कि पैरेंट मीडिया कंपनी के पास एक ओपन और ईमानदार सुधार नीति हो.” करेक्शन पब्लिश नहीं करके विश्वास न्यूज़ की पैरेंट मीडिया कंपनी IFCN कोड का उल्लंघन कर रही है.

‘IFCN द्वारा ग़लत सूचना पर मंजूरी की मुहर’

ऑल्ट न्यूज़़ ने न्यूज़़लॉन्ड्री की कार्यकारी संपादक मनीषा पांडे से बात की. एक पत्रकार के रूप में उनके बड़े पोर्टफ़ोलियो के अलावा, उन्हें भारत में वॉचडॉग पत्रकारिता में पांच साल का अनुभव है. वो यूट्यूब शो Newsance की राइटर और होस्ट हैं.

मनीषा ने बताया, “कोई भी संपादकीय चूक को समझ सकता है. एक मीडिया आउटलेट कुछ जानकारी से चूक जाता है या वो बिना किसी मेहनत के वीडियो शेयर कर देते हैं. क्योंकि ये क्लिक की संख्या और ऑनलाइन ट्रैफ़िक की मात्रा का मामला है. लेकिन जो बात उनके पहले पन्ने पर आती है, वो असल में बहुत बड़ा अंतर पैदा करती है जब कोई साजिश के सिद्धांतों को प्रमुख स्थान देता है. दैनिक जागरण के पहले पन्ने पर जिस तरह की ग़लत खबर पब्लिश होती है, वो कभी-कभी सीधे-सीधे साजिश के सिद्धांत होते हैं.”

मनीषा ने ये भी बताया कि जब 2018 में कठुआ में एक 8 साल की लड़की के साथ गैंग रेप किया गया और उसकी हत्या कर दी गई, तो जागरण ने दावा किया कि कोई बलात्कार नहीं हुआ था (ऑल्ट न्यूज़़, न्यूज़़लॉन्ड्री की रिपोर्ट). 2020 में जब हाथरस में एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था, जागरण ने दावा किया था कि उसकी हत्या उसके भाई और मां ने की थी. 2020 के बलात्कार के मामलों का ज़िक्र करते हुए, उन्होंने कहा, “बिना कंफ़र्म किए, दैनिक जागरण ने रिपोर्ट किया कि पीड़िता का अफ़ेयर चल रहा था. न्यूज़़लॉन्ड्री को ऐसे कई उदाहरण मिले हैं जब दैनिक जागरण ने मुस्लिम विरोधी षड्यंत्र सिद्धांत ‘लव जिहाद’ को आगे बढ़ाते हुए संदिग्ध सोर्स पर भरोसा किया. ये डेवलपिंग स्टोरीज़ का सवाल नहीं है. पत्रकारिता की बेसिक बातें जैसे कि विश्वसनीय सोर्सेज़ को ढूंढना और एक रिपोर्ट के अंदर ट्रायंगुलेशन की कमी जो पहले पन्ने के लिए जरूरी हैं, कभी-कभी मौजूद नहीं होती हैं.”

उन्होंने कहा, “IFCN के दृष्टिकोण से विश्वास न्यूज़ को शामिल करने के पीछे ये वजह हो सकती है कि वो सबसे बड़े और सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाले हिंदी भाषा के मीडिया आउटलेट का हिस्सा हैं. मेरी राय में, अगर विश्वास न्यूज़ को न सिर्फ एक फ़ैक्ट-चेकर्स के रूप में बल्कि IFCN बोर्ड में जगह दी गई है, तो वो इनडायरेक्टली दैनिक जागरण द्वारा फ़ैलाई गई ग़लत सूचना पर भी मुहर लगा रहे हैं.”

ऑल्ट न्यूज़़ ने 19 अक्टूबर को MMI ऑनलाइन लिमिटेड, विश्वास न्यूज़़, पोयंटर, IFCN फ़ेसबुक, बूमलाइव, FactCheck.in और फ़ेसबुक के संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया. फ़ेसबुक के प्रवक्ता ने जवाब दिया, “हमारे पास शेयर करने के लिए कोई इनपुट नहीं है.”

पिछले साल, प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने 10 और 16 जून को न्यूज़ पेपर के नई दिल्ली एडिशनस में न्यूज़ की आड़ में दैनिक जागरण के प्रकाशन विज्ञापनों का स्वत: संज्ञान लिया था. उसी साल, न्यूज़़लॉन्ड्री ने रिपोर्ट किया कि कैसे दैनिक जागरण ने यूपी सरकार के विज्ञापनों के कई उदाहरणों पर पत्रकारों की बायलाइन के साथ पब्लिश किया. पिछले महीने न्यूज़़लान्यूड्री ने भी एक डिटेल आर्टिकल पब्लिश किया था जिसमें जागरण ग्रुप के ऑनरशिप से संबंधित बारीकियों को शामिल किया गया था.

दैनिक जागरण द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचना

ग़लत सूचना के 17 उदाहरणों के वर्गीकरण पर, हमने देखा कि 42.1% ने मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया और 26.3% सरकार समर्थक थे.

ध्यान दीजिए कि अखबारों के विज्ञापनों पर सरकारी खर्च के बारे में 2019 की एक रिपोर्ट में इंडो-एशियन न्यूज़ सर्विस ने बताया, “2014-15 से 2018-19 के टाइम-फ़्रेम में दैनिक जागरण सबसे आगे रहा जिसने इस समय सीमा में 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा के सरकारी विज्ञापन प्राप्त किए.”

1. खराब मौसम के कारण हरियाणा के मुख्यमंत्री की रैली रद्द हो गई, और किसान प्रोटेस्ट को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 10 जनवरी, 2021 को करनाल ज़िले के कैमला गांव में केंद्र के नए कृषि कानूनों के फायदों के बारे में जनता को सूचित करने के लिए एक रैली आयोजित करने की योजना बनाई थी. उसी शाम, दैनिक जागरण ने रिपोर्ट किया कि कार्यक्रम रद्द कर दिया गया. क्योंकि खराब मौसम के कारण मनोहर लाल खट्टर उपस्थित नहीं हो पाए थे. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि सीएम सभा में इसलिए नहीं पहुंच सकें. क्योंकि उनके हेलिकॉप्टर को खराब मौसम में उड़ान भरने में परेशानी हुई थी. हालांकि, दूसरे न्यूज़ आउटलेट्स ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध को रद्द करने के पीछे का कारण बताया. ये बताए जाने के बाद कि उन्होंने ग़लत सूचना पब्लिश की है. दैनिक जागरण ने अपनी रिपोर्ट को एडिट करते हुए ये दिखाया कि प्रदर्शनकारियों के एक ग्रुप द्वारा किए गए हंगामे की वजह से सीएम करनाल में रैली को संबोधित नहीं कर सके थे.

2. झूठा दावा किया गया कि 2021 गणतंत्र दिवस परेड में सूरीनाम के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि होंगे

जनवरी 2021 में जागरण जोश (जागरण प्रकाशन लिमिटेड का हिस्सा) ने दावा किया कि सूरीनाम के भारतीय मूल के राष्ट्रपति चंद्रिकाप्रसाद संतोखी 2021 वार्षिक गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि होंगे. इस रिपोर्ट में सोर्स के रूप में ‘मीडिया रिपोर्ट्स’ का हवाला दिया गया है.

विदेश मंत्रालय ने 14 जनवरी, 2021 को ये स्पष्ट किया कि इस गणतंत्र दिवस पर किसी भी विदेशी नेता को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित नहीं किया जाएगा. इसने घोषणा की, “गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में कोई विदेशी नेता नहीं होगा. ये निर्णय कोविड-19 से उत्पन्न वैश्विक स्थिति के कारण किया गया है.”

3. दावा किया गया कि ‘हार्वर्ड’ स्टडी ने COVID के दौरान प्रवासी संकट से निपटने के लिए यूपी सरकार की सराहना की

अप्रैल 2021 में दैनिक जागरण ने रिपोर्ट किया कि हार्वर्ड के एक अध्ययन ने अन्य राज्यों की तुलना में प्रवासी संकट से ज़्यादा प्रभावी ढंग से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की सराहना की. इस स्टडी में कथित तौर पर प्रवासी मज़दूरों के संकट को हल करने के योगी आदित्यनाथ के तरीके की सराहना की गई. जागरण ने बस और ट्रेन सेवाओं और रेलवे के साथ सहयोग सहित चार फ़ोकस क्षेत्रों में यूपी सरकार के प्रयासों को प्रदर्शित करने के लिए एक तथाकथित हार्वर्ड अध्ययन का हवाला दिया.

आगे की जांच करने पर, ऑल्ट न्यूज़़ ने देखा कि ये स्टडी इंस्टीट्यूट फ़ॉर कॉम्पिटिटिवनेस (IFC) द्वारा पब्लिश की गई थी न कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा. ‘कोविड-19 एंड द मायग्रेंट क्राइसिस रिज़ोल्यूशन: ए रिपोर्ट ऑन उत्तर प्रदेश’ टाइटल वाली स्टडी के कवर पेज पर दो लोगो थे- एक IFC का और दूसरा ‘माइक्रोइकॉनॉमिक्स ऑफ़ कॉम्पिटिटिवनेस’ (MoC) का जो कि इंस्टीट्यूट फ़ॉर इंस्टीट्यूशन द्वारा विकसित एक कोर्स प्लेटफॉर्म है. इसे हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल (HBS) में इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्ट्रेटेजीएंड कॉम्पिटिटिवनेस द्वारा दुनिया भर के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया है. हमने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र से बात की जिन्होंने कहा कि ‘हार्वर्ड स्टडी’ जैसी कोई चीज नहीं होती. स्टडी का क्रेडिट लेखकों को दिया जाता है न कि वैधता बनाने के लिए विश्वविद्यालय को. ऑल्ट न्यूज़़ ने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल में इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटेजी एंड कॉम्पिटिटिवनेस के कॉम्पिटिटिवनेस एंड इकॉनोमिक डेवलपमेंट प्रोग्राम मैनेजर केटलिन बी. अहर्न से बात की. इन्होंने भी ये कहा कि MoC से संबद्ध एक स्टडी को हार्वर्ड स्टडी कहना सही नहीं था.

इसके अलावा, ये देखा गया कि बाहरी उपयोग के किसी भी मकसद के लिए ‘हार्वर्ड’ या इसके किसी लोगो, मुहर, कोई अन्य प्रतीक, शब्द, नाम या उपकरण के रूप में हार्वर्ड या किसी हार्वर्ड स्कूल की पहचान करने के लिए विश्वविद्यालय से लिखित स्वीकृति की जरूरत होती है.

इसके अलावा, इस अध्ययन द्वारा निकाले गए निष्कर्ष को मीडिया रिपोर्ट्स में ग़लत तरीके से पेश किया गया है. IFC के मानद अध्यक्ष अमित कपूर ने ऑल्ट न्यूज़़ से बात की और कहा कि अध्ययन से ये निष्कर्ष नहीं निकलता है कि यूपी सरकार ने COVID संकट को अन्य राज्यों की तुलना में ज़्यादा प्रभावी ढंग से संभाला है. उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट इंटरनल कंज़म्पशन के लिए था और इसे सार्वजनिक करने का इरादा नहीं था.

इस तरह, IFC की एक स्टडी को यूपी सरकार और मीडिया द्वारा ग़लत तरीके से हार्वर्ड स्टडी के रूप में बताया गया. इसके अलावा, IFC के मानद चेयरमैन अमित कपूर ने ऑल्ट न्यूज़़ को बताया कि MOC के लोगो को रिपोर्ट से हटा दिया जाएगा. इसे बूमलाइव द्वारा भी रिपोर्ट किया गया था.

4. यूपी में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए गए

उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत चुनाव के नतीजे आने के बाद दैनिक जागरण ने 5 मई, 2021 को एक आर्टिकल पब्लिश किया. इसका टाइटल था, “बहराइच में नेपाल सीमा पर गूंजा पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा, वीडियो इंटरनेट मीडिया पर वायरल.”

ऑल्ट न्यूज़़ ने देखा कि हाजी अब्दुल कलीम के समर्थक ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे नहीं लगा रहे थे. बल्कि ‘हाजी साब ज़िंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे जिसे ध्यान से साफ सुना जा सकता है. बहराइच पुलिस ने जुलूस में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाने के दावों को खारिज करते हुए एक ट्वीट भी किया. “सच्चाई ये है कि नवनिर्वाचित प्रधान के समर्थकों ने विजय जुलूस में सिर्फ हाजी साहब जिंदाबाद के नारे लगाए, पाकिस्तान जिंदाबाद के नहीं. वायरल वीडियो क्लिप के ऑडियो को ध्यान से सुनने पर ये साफ पता चलता है.” ऑल्ट न्यूज़़ ने हाजी अब्दुल कलीम के भाई हाजी अब्दुल रहीम से संपर्क किया, उन्होंने भी इन दावों का खंडन किया.

5. COVID-19 के दौरान प्रयागराज में शवों को दफ़नाने पर भ्रामक रिपोर्ट

ऑल्ट न्यूज़़ ने देखा कि दैनिक जागरण ने COVID-19 की दूसरी लहर की गंभीरता को कम करने की कोशिश करने वाली रिपोर्ट्स की एक सीरीज पब्लिश की थी. 26 मई, 2021 को हिंदी दैनिक ने बड़ी तादात में दफ़नाए गए शवों की एक तस्वीर पब्लिश की और दावा किया कि ये 2018 की तस्वीर है, साथ ही ज़ोर देते हुए कहा कि प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर घाट पर दफ़नाए गए शवों की ज़्यादातर तस्वीरें पुरानी थीं. इसके बाद ये दिखा कर मौतों की संख्या को सामान्य करने की कोशिश की गई कि महामारी की वजह से इनमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और इस तरह से शव हमेशा दफ़न होते रहे हैं. उसी दिन जागरण ने अपने प्रिंट वर्ज़न में एक और रिपोर्ट पब्लिश की जिसकी हेडलाइन थी, ‘देयर वाज नो कोरोना थ्री इयर्स एगो, बट पिक्चर्स ऑफ़ द बैंक्स ऑफ़ गंगा फ्रॉम थ्री इयर्स एगो वर द सेम.’ (तीन साल पहले कोरोना नहीं था, लेकिन तीन साल पहले गंगा के किनारे की तस्वीरें ऐसी ही थीं). ये रिपोर्ट जागरण के नई दिल्ली एडिशन में भी पब्लिश हुई थी. इसमें तीन पॉइंट्स को हाईलाइट किया गया (लाल रंग से मार्क किया गया) – 1) कई हिंदू समुदाय दफन करके दाह संस्कार करते हैं; 2) डिजिटल मीडिया ने इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाया; 3) कुष्ठ और सांप के काटने से मरने वाले लोगों को घाट पर दफनाया जाता था. ऐसी ही एक रिपोर्ट जागरण के प्रयागराज एडिशन में 28 मई, 2021 को पब्लिश की गई थी. मार्च 2018 और दिसंबर 2018 के बीच किसी भी राष्ट्रीय मीडिया आउटलेट ने गंगा के तट पर बड़े पैमाने पर शव दफ़नाने की सूचना नहीं दी थी जैसा कि जागरण ने दावा किया है.

अजीब बात है कि इन खबरों के प्रकाशित होने के लगभग 10 दिन पहले 15 मई को जागरण ने श्रृंगवेरपुर घाट पर दफ़नाए गए शवों की एक तस्वीर पब्लिश करते हुए ये रिपोर्ट किया कि अप्रैल के आखिरी सप्ताह से हर दिन 100 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. आउटलेट ने कहा कि सामान्य दिनों में 20-25 शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है.

स्थानीय इंडिपेंडेंट फ़ोटो जर्नलिस्ट प्रभात कुमार वर्मा ने ऑल्ट न्यूज़़ को बताया कि अप्रैल-मई 2021 में उन्होंने न सिर्फ श्रृंगवेरपुर घाट पर बल्कि अन्य घाटों पर भी सबसे ज़्यादा शव देखे. सिंह ने स्थानीय पुजारियों से भी बात की जिन्होंने बताया कि उस समय के दौरान मौतों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई थी.

भाजपा की राज्य मंत्री और यूपी कोऑर्डिनेटर अनामिका चौधरी और यूपी के को-कोऑर्डिनेटर सुनील निषाद ने एक फ़ोन पर हुई बातचीत में ऑल्ट न्यूज़़ को बताया कि श्रृंगवेरपुर घाट और फाफामऊ घाट पर महामारी के दौरान शव दफ़नाने की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.

कुछ ही समय बाद दैनिक जागरण ने ऑल्ट न्यूज़़ पर मानहानि का आरोप लगाया और दिल्ली की एक अदालत में याचिका दायर की. उन्होंने दावा किया कि फ़ैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ने अपने आर्टिकल में झूठे और अपमानजनक बयान दिए थे. नवंबर 2021 में सिविल जज चित्रांशी अरोड़ा ने जागरण की याचिका को खारिज करते हुए कहा, “अदालत के पास इस तरह के शुरुआती चरण में हस्तक्षेप करने और उच्च न्यायालयों द्वारा विकसित अभिव्यक्ति की आज़ादी की लगातार बढ़ती सीमाओं को दबाने का कोई कारण नहीं है.”

फ़रवरी 2023 तक दैनिक जागरण ने अपनी रिपोर्ट में कोई सुधार नहीं किया है.

6. झारखण्ड में दिखा ‘एलियन/भूत’ का दावा करने वाला नकली वीडियो

मीडिया और सोशल मीडिया दोनों पर एक वीडियो काफी चल रहा है. ये वीडियो रात में हाईवे पर चलते हुए एक छायादार आकृति का है. इस क्लिप को इस दावे के साथ शेयर किया गया था कि भारत में एक ‘एलियन’ या ‘भूत’ देखा गया था. वीडियो को दैनिक जागरण सहित मेनस्ट्रीम के मीडिया चैनलों ने अम्प्लीफ़ायड किया था. जागरण का आर्टिकल, “हजारीबाग में विचित्र मानव को देख सहमे लोग, किसी ने कहा एलियन तो किसी ने भूत” टाइटल से 29 मई, 2021 को पब्लिश हुआ था. जागरण ने इस विज़ुअल्स के पीछे की असली कहानी के बारे में पता लगाने की कोशिश नहीं की.

ऑल्ट न्यूज़़ ने देखा कि वीडियो सरायकेला में शूट किया गया था न कि हजारीबाग में, जैसा कि दावा किया गया था. स्थानीय चैनल जन दूत न्यूज़ ने वायरल वीडियो रिकॉर्ड करने वाले दो युवकों का इंटरव्यू लिया और कहा कि खरसावां रोड के रास्ते चक्रधरपुर से सरायकेला लौटते समय, उन्होंने एक अजीब महिला को नंगे घूमते हुए देखा. एक युवक की पहचान दीपक के रूप में हुई है. उन्होंने 30 सेकंड का व्हाट्सऐप स्टेटस पोस्ट किया जिसे सोशल मीडिया पर आगे बढ़ाया गया. ऑल्ट न्यूज़़ ने दीपक से संपर्क किया जिन्होंने बताया कि तथाकथित ‘एलियन-साइटिंग’ असल में सड़क पर चल रही एक नग्न महिला थी. दीपक ने असली वीडियो भी ऑल्ट न्यूज़़ को भेजा था और इसे आर्टिकल में देखा जा सकता है.

फ़रवरी 2023 तक, दैनिक जागरण ने सुधार कर के इस रिपोर्ट को अपडेट नहीं किया है.

7. कश्मीर में हिजबुल कमांडर के मारे जाने के रूप में IS आतंकवादी की तस्वीर शेयर की

7 जुलाई, 2021 को हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर महराजुद्दीन हलवाई की हत्या का कवरेज करते हुए जागरण ने IS आतंकवादी उमर हुसैन की तस्वीर का इस्तेमाल किया था. ऑल्ट न्यूज़़ ने देखा कि ISIS लड़ाके उमर हुसैन की तस्वीर पत्रकारों द्वारा इस्तेमाल की गई थी और भारत में मीडिया पोर्टल्स द्वारा हिज्बुल कमांडर महराजुद्दीन हलवाई के रूप में चलाई गई थी जिसे हाल ही में मार गिराया गया था.

8. यूपी में ‘तांगा’ चलाने वालों द्वारा पाकिस्तान का झंडा फहराने की गलत खबर दी

अगस्त 2021 में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक व्यक्ति ये आरोप लगा रहा है, “नूर आलम और वसीर के तांगे पर पाकिस्तान का झंडा लगा है जिसका वो 20 सालों से इस्तेमाल कर रहे हैं और उनका दावा है कि उन्हें ये बात पता नहीं है (कि उनके तांगे पर पाकिस्तान का झंडा लगा है). उन्हें ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’ कहने में दिक्कत है. लेकिन ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ कहने में कोई शर्म नहीं है.’ वीडियो में दिख रहा शख्स फिर मुस्लिम समुदाय के दो गरीब तांगा चालकों को परेशान करता है, उन्हें ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’, ‘भारत माता की जय’ और ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाने के लिए मजबूर करता है. उनके द्वारा नारे लगाने के बाद भी वो उनका पीछा करना जारी रखता है. इस कवरेज से नाराज होकर, वसीर ने उस आदमी से सवाल किया कि उन्हें ये नारे क्यों लगाना चाहिए और बातचीत को ये कहकर खत्म कर दिया कि दोनों देशों की जय हो. दैनिक जागरण ने एक स्टोरी भी चलाई जिसमें दावा किया गया कि तांगे पर पाकिस्तान का झंडा लगाया गया था. 25 अगस्त, 2021 को जागरण ने वायरल वीडियो के आधार पर एक रिपोर्ट पब्लिश की जिसका टाइटल था, “लखनऊ में लगे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे, इंटरनेट मीडिया पर वीडियो वायरल.” पुलिस ने दोनों पक्षों से बात की – तांगा चालक और वो लोग जिन्होंने उस पर पाकिस्तान के झंडे के साथ तांगा चलाने का आरोप लगाया था. और ये निष्कर्ष निकालने के बाद मामला सुलझा लिया गया कि तांगे पर इस्लामी प्रतीक का झंडा लगा है. लखनऊ पुलिस ने ऑल्ट न्यूज़़ से इसकी पुष्टि की.

फ़रवरी 2023 तक, दैनिक जागरण ने इस स्टोरी में कोई सुधार नहीं किया है.

9. नीरज चोपड़ा के मराठा वंश के होने का झूठा दावा

अगस्त 2021 में नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक जीतने के तुरंत बाद, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य एम सिंधिया ने उन्हें बधाई दी और लिखा, “उन्होंने सच्ची मराठा भावना और कौशल का प्रदर्शन किया.” दैनिक जागरण सहित कई न्यूज़ आउटलेट्स ने नीरज के कथित मराठा वंश के बारे में रिपोर्ट किया. 9 अगस्त, 2021 का जागरण का आर्टिकल जिसका टाइटल है, “मराठाओं से है नीरज चोपड़ा का नाता, योद्धा बनकर भाले से जीती दुनिया,” के मुताबिक, नीरज चोपड़ा ने खुद को उन्हीं मराठाओं से जोड़ा जिन्होंने पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी थी.

असल में नीरज चोपड़ा रोर (उच्चारण राउड़) समुदाय से हैं. रोर समुदाय के सदस्यों के साथ हमारी बातचीत के आधार पर, ऐसा लगता है कि दो विचार मौजूद हैं – समुदाय का एक वर्ग मानता है कि उनका वंश मराठों से निकटता से जुड़ा हुआ है और दूसरा, जिसमें नीरज का परिवार भी आता है, मराठा वंश सिद्धांत में विश्वास नहीं करता है.

फ़रवरी 2023 तक, दैनिक जागरण ने इस स्टोरी में कोई सुधार नहीं किया है.

10. पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक के बालाकोट हवाई हमले में 300 लोगों की मौत का झूठा दावा

जनवरी 2021 में दैनिक जागरण ने रिपोर्ट किया कि पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक, ‘आघा’ हिलाली ने स्वीकार किया है कि 2019 के बालाकोट हवाई हमले में पाकिस्तानी साइड से 300 हताहत हुई थी. रिपोर्ट के मुताबिक, एक पाकिस्तानी उर्दू चैनल पर डिबेट के दौरान हिलेली ने कहा, ‘भारत ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की और युद्ध की ऐसी हरकत की जिसमें कम से कम 300 के मारे जाने की ख़बर है. हमारा लक्ष्य उनसे अलग था. हमने उनके हाईकमान को निशाना बनाया. ये हमारा वैध लक्ष्य था क्योंकि वो सेना के जवान हैं. हमने अवचेतन रूप से स्वीकार किया कि सर्जिकल स्ट्राइक – एक सीमित कार्रवाई – के परिणाम में कोई हताहत नहीं हुई. अब हमने अवचेतन रूप से उन्हें बता दिया है कि वो जो करेंगे, हम उतना ही करेंगे और आगे नहीं बढ़ेंगे. जागरण ने अपनी रिपोर्ट में न्यूज़ एजेंसी ANI का हवाला दिया है.

हमने देखा कि ये रिपोर्ट सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक पैनल चर्चा के क्लिप्ड और एडिट किए गए वीडियो पर आधारित थी. असली वीडियो में हिलाली ने कहा कि भारत ने 300 लोगों को मारने का इरादा किया था. लेकिन असल में, भारतीय ऑपरेशन विफल हो गया और एक फ़ुटबॉल मैदान पर बमबारी की गई. इसे बूमलाइव ने भी रिपोर्ट किया था.

11. RRB-NTPC प्रोटेस्ट: पुलिस की ज़्यादती पर रिपोर्ट करते हुए 2019 की तस्वीर का इस्तेमाल किया

25 जनवरी, 2022 को रेलवे द्वारा दो चरणों में परीक्षा आयोजित करने के फैसले के खिलाफ यूपी में RRB-NTPC परीक्षा के आवेदकों की एक बड़ी संख्या प्रयागराज में रेलवे ट्रैक पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए जमा हुई. विरोध के दौरान, पुलिस द्वारा छात्रों का पीछा किया गया, और कुछ छात्रों ने कथित तौर पर पथराव कर जवाब दिया. इसके जवाब में पुलिस ने पास के एक छात्रावास में जबरदस्ती घुसकर छात्रों पर लाठीचार्ज किया. पुलिस की ज़्यादती का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसके बाद 6 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया. 28 जनवरी, 2022 को प्रोटेस्ट पर रिपोर्ट करते हुए, दैनिक जागरण ने एक आर्टिकल पब्लिश किया जिसमें पुलिस हिंसा में घायल एक छात्र की कथित तस्वीर थी.

ऑल्ट न्यूज़़ के फ़ैक्ट-चेक से पता चला कि उनके द्वारा इस्तेमाल की गई तस्वीर RRB-NTPC प्रोटेस्ट से संबंधित नहीं थी, और कम से कम दो साल पुरानी थी. ये तस्वीर पहली बार बांग्लादेश में फ़ेसबुक पर इस दावे के साथ वायरल हुई थी कि तस्वीर में दिख रहे व्यक्ति ने COVID लॉकडाउन दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया था और परिणामस्वरूप, पुलिस ने उसकी पिटाई की. इसे तस्वीरों की एक सीरीज के साथ शेयर किया गया था जिसमें ये बताया गया है कि घटना कैसे हुई. घायल युवक की यही तस्वीर 2020 में मलेशिया में इस दावे के साथ वायरल हुई थी कि मलेशियाई सशस्त्र बलों के सैनिकों ने मूवमेंट कंट्रोल आर्डर (MCO) को लागू करते हुए एक लड़के पर हमला किया था. इसे सशस्त्र बलों द्वारा ये कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि तस्वीर मूल रूप से बांग्लादेश की है और 2019 में अपलोड की गई थी

12. झारखंड में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने की ग़लत ख़बर

झारखंड के गिरिडीह ज़िले की डोकीडीह पंचायत में मुखिया उम्मीदवार शाकिर हुसैन के नामांकन के दौरान लिया गया एक वीडियो इस दावे के साथ वायरल हुआ कि नामांकन रैली में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए गए. दैनिक जागरण ने इस संबंध में 23 अप्रैल, 2022 को एक आर्टिकल पब्लिश किया जिसकी हेडलाइन थी, “गिरिडीह में पाकिस्‍तान जिंदाबाद की नारेबाजी मामले में मुखिया प्रत्‍याशी को भी भेजा गया जेल, 50-60 अज्ञात पर केस.” रिपोर्ट एक फ़ेसबुक लाइव स्ट्रीम पर आधारित है जो वायरल हो गई थी. वीडियो में प्रमुख उम्मीदवार को ब्लॉक मुख्यालय के गेट पर पहुंचते हुए दिखाया गया है. जागरण ने दावा किया कि नारेबाजी के दौरान पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे और लगातार कई बार दोहराया गया, किसी ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई.

ऑल्ट न्यूज़़ ने डोकीडीह के स्थानीय निवासियों से संपर्क किया जिन्होंने बताया कि जुलूस के दौरान ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे नहीं लगाए गए थे. ऑल्ट न्यूज़़ ने भी स्लो मोशन में वीडियो को ध्यान से देखा और डिटेल में वीडियो का विश्लेषण किया. हम इस नतीजे पर पहुंचे कि झारखंड के गिरिडीह ज़िले के डोकीडीह मुखिया उम्मीदवार शाकिर हुसैन के नामांकन जुलूस के दौरान ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे नहीं बल्कि ‘शाकिर हुसैन जिंदाबाद’ के नारे लगे थे. जागरण ने फ़ैक्ट्स की जांच किए बिना ही स्टोरी को आगे बढ़ाया.

फ़रवरी 2023 तक, दैनिक जागरण ने इस स्टोरी में कोई सुधार नहीं किया है.

13. सहारनपुर में नमाज पर पाबंदी के कारण नारेबाज़ी की झूठी ख़बर दी गई

एक मस्जिद के बाहर नारे लगाते हुए मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के एक ग्रुप का एक वीडियो सोशल मीडिया पर इस दावे के साथ वायरल हुआ था कि सड़क पर नमाज़ अदा करने से रोकने पर मुस्लिमों ने सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन किया. दैनिक जागरण के 29 अप्रैल, 2022 के एक ट्वीट के मुताबिक, “सहारनपुर में सड़क पर नमाज पढ़ने के विरोध के बाद जामा मस्जिद के बाहर हंगामा, मौके पर डीएम तथा एसएसपी.”

सहारनपुर पुलिस के ऑफ़िशियल ट्विटर हैंडल से SSP आकाश तोमर ने वायरल वीडियो के संबंध में एक बयान जारी किया था जिसमें लिखा था, “…..जब लोग मस्जिद में नमाज पढ़कर लौट रहे थे, तो कुछ मीडियाकर्मियों ने उनसे भड़काऊ सवाल पूछे जिस दौरान कुछ युवकों ने हंगामा किया. लेकिन बाद में मामला शांत हो गया. ये मामला अब शांत और सामान्य है… ” ऑल्ट न्यूज़़ को जामा मस्जिद सहारनपुर के इमाम का एक वीडियो भी मिला था जिसमें पुलिस के बयानों की पुष्टि की गई थी. ऑल्ट न्यूज़़ ने ग्राउंड पर मौजूद एक अन्य पत्रकार से बात की जिन्होंने खुलासा किया कि न्यूज़ और सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही ख़बर झूठी थी. कुल मिलाकर, ऑल्ट न्यूज़़ के फ़ैक्ट-चेक से पता चला कि सहारनपुर में मुस्लिमों ने प्रशासन द्वारा ‘सड़क पर नमाज पढ़ने से मना’ करने के बाद नारे नहीं लगाए थे.

इस स्टोरी को फ़रवरी 2023 तक, सुधार के साथ अपडेट नहीं किया गया है.

14. मध्य प्रदेश के कटनी में पाकिस्तान समर्थक नारों की ग़लत सूचना दी

सोशल मीडिया पर एक वीडियो इस दावे के साथ वायरल था कि सरपंच चुनाव में एक मुस्लिम नेता की जीत के बाद मध्य प्रदेश के कटनी में पाकिस्तान समर्थक नारे लगाए गए थे. इसके बाद, दैनिक जागरण ने 2 जुलाई, 2022 को ट्वीट किया, ‘मुस्लिम के सरपंच बनने के बाद कटनी में समर्थकों ने लगाए ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे: ‘पाकिस्तान जीत गया.’ ट्वीट के साथ इस मामले पर जागरण द्वारा पब्लिश एक आर्टिकल अटैच किया गया था.

हमने वायरल वीडियो की सावधानीपूर्वक जांच की और देखा कि, ‘वाजिद भाई जीता – वाजिद भाई जीत गया’ (जीत गया भाई जीत गया – वाजिद भाई जीत गया) और ‘वाजिद भाई जिंदाबाद’ के नारे लगाए जा रहे थे. हमने वीडियो को स्लो करके भी देखा. लेकिन कोई भी पाकिस्तान समर्थक नारेबाजी नहीं सुनाई दी. शेख सईद उर्फ ​​वाजिद, मध्य प्रदेश के कटनी जिले के चाका ग्राम पंचायत से सरपंच का चुनाव जीतने वाली उम्मीदवार रहीशा बेगम के पति हैं. हमने वाजिद से संपर्क किया जिन्होंने भी यही कहा कि पाकिस्तान के समर्थन में कोई नारे नहीं लगाए गए थे. शेख सईद उर्फ ​​वाजिद ने ऑल्ट न्यूज़़ के साथ घटना के तीन वीडियोज़ भी शेयर किए. इन सभी को ध्यान से सुनने के बाद ये साफ हो गया कि जो नारे लगाए जा रहे थे वो ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ नहीं बल्कि ‘वाजिद भाई जिंदाबाद’ थे. ये जागरण द्वारा बुनियादी वेरिफ़िकेशन के बिना ग़लत सूचना पब्लिश करने का एक और इंस्टैंस था.

15. असम में 2022 में आयी सिलचर बाढ़ का सांप्रदायिकरण

जून में असम में आयी बाढ़ पर रिपोर्ट करते हुए, NewsX ने इस बाढ़ को ‘बाढ़ जिहाद‘ बताया और इस आपदा के लिए असम के मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराया. हिंदी मीडिया आउटलेट दैनिक जागरण ने ‘फ्लड जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन जुलाई, 2022 में उसकी रिपोर्ट में कहा गया, “इसके पीछे एक गहरी साजिश के संकेत हैं.” ऑल्ट न्यूज़़ ने फ़ैक्ट-चेक में पाया गया कि असम के मुख्यमंत्री और पुलिस ने सांप्रदायिक ऐंगल का खंडन किया.

16.शराब के नशे में दूल्हे द्वारा भाभी को वरमाला पहनाने का स्क्रिप्टेड वीडियो असली बताकर पब्लिश किया

सोशल मीडिया पर एक कथित शादी का वीडियो काफी शेयर किया गया था. वीडियो में दूल्हा नशे में धुत नजर आ रहा है और दुल्हन के बगल में खड़ी महिला को वरमाला पहना रहा है. बाद में वरमाला पहनी महिला गुस्से में दूल्हे को थप्पड़ मार देती है. दैनिक जागरण के ऑनलाइन पोर्टल ने 25 जून, 2022 को पब्लिश अपनी रिपोर्ट में इस दावे को आगे बढ़ाया. जागरण ने खबर को ये टाइटल दिया, “नशेड़ी दूल्हे ने दुल्हन की बजाए उसकी छोटी बहन को पहनाई वरमाला, गुस्साई साली ने ताबड़तोड़ बरसाए चांटे.”

दरअसल, ये वीडियो स्क्रिप्टेड था. ऑल्ट न्यूज़़ ने यूट्यूब पर सर्च किया. हमें 16 मई, 2022 को मिथिला बाज़ार नामक एक यूट्यूब चैनल का मूल वीडियो मिला. वीडियो के डिस्क्रिप्शन में लिखा है, “इस वीडियो के सभी पात्र और कहानी काल्पनिक हैं और इन्हें सिर्फ मनोरंजन के मकसद से बनाया गया है.” डिस्क्रिप्शन में कलाकारों के नाम भी थे. इस चैनल की टाइमलाइन चेक करने पर हमने देखा कि ये अक्सर मनोरंजन के लिए नाटकीय वीडियो बनाते हैं.

17. क्या मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि मंगलसूत्र हटाना मानसिक क्रूरता है?

तलाक याचिका के खिलाफ दायर अपील में मद्रास हाई कोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा कथित फैसले के बाद सोशल मीडिया पर हंगामा शुरू हो गया. 14 जुलाई, 2022 को पब्लिश जागरण के आर्टिकल की हेडलाइन थी, “मद्रास हाई कोर्ट का बड़ा बयान, कहा- गले से मंगलसूत्र उतारना पति से मानसिक क्रूरता की पराकाष्ठा.” ऑल्ट न्यूज़़ ने फ़ैक्ट-चेक में पाया कि कई मीडिया घरानों ने PTI की स्टोरी का ग़लत मतलब निकाला था.

(अगर किसी संबंधित पक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया आती है तो ये रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.)

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