साल 2020 अभूतपूर्व और हैरान कर देने वाली घटनाओं से भरा रहा. जो लोग भाग्यशाली थे, उन्हें सिर्फ़ घर में खुद को बंद करना पड़ा वहीं गरीब और सुविधाओं से वंचित लोगों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं. और बात सिर्फ़ घर में कैद होने की मजबूरी की ही नहीं थी. हमें अपने जीने के अंदाज़ तक को बदलना पड़ा.

2020 को केवल कोविड-19 के लिए नहीं, बल्कि साम्प्रदायिक दंगों, स्टूडेंट प्रोटेस्ट्स, नागरिक अधिकार आंदोलनों और अल्पसंख्यकों के साथ हुए अन्याय वाले साल के तौर पर भी याद रखा जाएगा.

बीता हुआ साल हमें याद दिलाता रहेगा कि कैसे मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी भ्रामक सूचनायें फैलाने में भूमिका निभाई. टीवी स्क्रीन्स पर चीखते-चिल्लाते न्यूज़ ऐंकर्स ने लाखों लोगों तक ग़लत सूचना पहुंचाने का काम किया. साल के शुरू में ऐंटी-सीएए प्रदर्शनों से लेकर 2021 में चल रहे किसान आंदोलनों तक, कई मेनस्ट्रीम पत्रकार ग़लत सूचना परोसने का मोर्चा संभालते हुए दिखे.

2020 की सबसे भ्रामक सूचनाएं

इस रिपोर्ट में ऑल्ट न्यूज़ ने बीते साल की सबसे बड़ी भ्रामक ख़बरों को सूचित किया है. नीचे उन्हें सब-केटेगरी में समेटा गया है:

1.ऐंटी-सीएए प्रोटेस्ट, दिल्ली दंगे और JNU में हिंसा से जुड़ी भ्रामक सूचनाएं.

2. कोरोना वायरस और मुस्लिम समुदाय को इसे लेकर बदनाम करने वाली ग़लत सूचनाएं.

3. कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के बारे में मीडिया द्वारा भ्रामकता फैलाया जाना.

4. कोविड-19 के बाबत मेडिकल फ़ील्ड से जुड़ी ग़लत जानकारियां.

5. भारत-चीन विवाद को लेकर मीडिया के ग़लत दावे.

6. किसान आन्दोलन से जुड़ी फ़र्ज़ी सूचनाएं.

7. ‘लव जिहाद’ को कानूनी रूप देने की कोशिशें.

सीएए विरोध, दिल्ली दंगों और जामिया एवं JNU में हुई हिंसा से जुड़ी अनेक ग़लत सूचनाएं फैलाई गयीं

महामारी के दस्तक देने से 2 महीने पहले नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ़ प्रदर्शन, जामिया मिलिया इस्लामिया और जवाहरलाल नेहरु विश्विद्यालय में हिंसा और उसके बाद दिल्ली दंगे जैसी घटनाएं हुईं. और इसी बीच सोशल मीडिया से लेकर टीवी तक कई बार इन घटनाओं से जुड़ी ग़लत और भ्रामक सूचनाएं लोगों तक पहुंचाई गयीं.

सीएए प्रदर्शनों को बदनाम करने के लिए सबसे बड़ा भ्रम ये कहकर फैलाया गया कि प्रदर्शन में भाग लेने वाली महिलाओं को पैसे दिए गए थे. भाजपा के नेशनल सोशल मीडिया इन-चार्ज अमित मालवीय ने ‘स्टिंग’ ऑपरेशन का दावा करते हुए एक वीडियो शेयर किया था और कहा था कि महिलाओं को 500-500 रुपये बांटे जा रहे हैं. इस ग़लत दावे का खुलासा ऑल्ट न्यूज़ और न्यूज़लॉन्ड्री ने मिलकर किया था. एक तरफ़ टाइम्स नाउ, रिपब्लिक भारत और इंडिया टुडे जैसे मेनस्ट्रीम मीडिया चैनल्स इस कथित ‘स्टिंग’ पर डिबेट करने में लगे थे, वहीं मालूम पड़ा कि ये केवल एक अफ़वाह थी जो दिल्ली की किसी दुकान के आगे खड़े 3 लोगों ने फैलाई थी.

इसी तरह एक अन्य वीडियो शेयर करते हुए दावा किया गया था कि मुस्लिम समुदाय के लोग रिश्वत ले रहे हैं. जबकि असल में, वीडियो में दिल्ली दंगों के पीड़ितों की मदद की जा रही थी.

भाजपा के सदस्यों और समर्थकों द्वारा शेयर किया गया ये वीडियो आज भी उनकी टाइमलाइन पर देखा जा सकता है.

दंगों के कुछ महीने बाद ऑल्ट न्यूज़ ने एक रिपोर्ट पब्लिश की थी जिसमें हमने एक शख्स का इंटरव्यू लिया था. इस शख्स ने दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों के दौरान कई भड़काऊ पोस्ट किये थे. इस रिपोर्ट में पता चलता है कि कैसे कट्टरता और ग़लत सूचना आपस में जुड़े हुए हैं. हिन्दू रक्षा दल के नाम से एक कट्टर हिन्दू समूह से जुड़े सुदेश ठाकुर ने भी इसी वीडियो की बात करते हुए प्रदर्शन को बुरा-भला कहा था जिसमें दंगा पीड़ितों को राहत प्रदान की जा रही थी.

इसके अलावा, मुस्लिम महिलाओं के ड्रग्स बेचने और वेश्यावृति में लीन होने जैसे फ़र्ज़ी आरोप भी लगाये गये थे. यहां तक कि जामिया स्कॉलर सफ़ूरा ज़रगर की प्रेग्नेंसी को लेकर लोगों ने उनकी शादी पर ही सवाल उठाना शुरू कर दिया था. सफ़ूरा ने निजी जीवन को अपनी राजनीति के बीच नहीं आने दिया. इसके बावजूद सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की भरमार दिखी जिन्होंने उनपर भद्दे और सेक्सिस्ट कमेंट्स किये.

टाइम्स नाउ ने मुस्लिम मॅाब पर गोली चलाते हुए एक शख्स का वीडियो शेयर करते हुए ग़लत दावा किया था कि गोली चलाने वाला ऐंटी-सीएए प्रदर्शनकारी है.

हमने ANI की सीएए से जुड़ी पूर्वाग्रह से भरी रिपोर्टिंग के बारे में भी लिखा. ANI ने विदेशों में प्रो-सीएए प्रदर्शनों को ही कवर किया, जबकि विदेशों में बड़े स्तर पर होने वाले ऐंटी-सीएए प्रोटेस्ट को उन्होंने पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दिया.

इसी तरह दिसम्बर 2019 में जामिया में हुई हिंसा को लेकर भी मेनस्ट्रीम मीडिया ने कई मौकों पर भ्रामक जानकारी दी. जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी के एक CCTV फ़ुटेज जारी करने के बाद इंडिया टुडे ने जो नैरेटिव दिया उसके अनुसार रीडिंग रूम में उपद्रवी जमा हो गए थे जिनका पीछा करते हुए पुलिस वहां पहुंच गयी. चैनल ने ये दिखाया कि छात्र दरवाज़े को ब्लॉक कर रहे थे, लेकिन ये नहीं दिखाया कि वहां जबरन घुसी पुलिस ने उन्हें कितनी बेरहमी से पीटा. इसके अलावा चैनलों ने 2 अलग-अलग फ़्लोर के विज़ुअल को मिक्स कर दिया.

दर्जनों मीडिया आउटलेट्स और प्रो-गवर्नमेंट पोर्टल्स ने लाठी चार्ज के दौरान एक छात्र के हाथ में मौजूद बटुए को पत्थर बताते हुए ग़लत रिपोर्टिंग की.

इतना ही नहीं, 5 जनवरी की रात JNU में हुई हिंसा से जुड़ी ग़लत सूचनाएं शेयर करने में कई पत्रकार शामिल थे. ABP न्यूज़ और प्रसार भारती के विकास भदौरिया ने फ़र्ज़ी आरोप लगाते हुए कहा था कि लेफ़्ट पार्टियों ने पहले ABVP पर हमला किया जिसके बाद हिंसा हुई. लेकिन वीडियो में नज़र आ रहा था कि ABVP का सदस्य AISA के सदस्य से मारपीट कर रहा था.

JNU हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस द्वारा 10 जनवरी की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में DCP (क्राइम) जॉय टिर्की ने उस पूरे घटनाक्रम का विवरण दिया जिसके बाद हिंसा हुई. उन्होंने संदिग्धों की तस्वीरों वाले पर्चे भी जारी किये. ऑल्ट न्यूज़ ने पाया था कि ये पर्चे पहले आरएसएस से मान्यता प्राप्त ABVP सदस्यों ने सोशल मीडिया पर वायरल किये थे. इनका डिज़ाइन और प्रिंट वैसा ही था जैसा DCP के दिखाए पर्चे पर.

ऑल्ट न्यूज़ ने JNU कैंपस में नकाबपोश महिला के बारे में भी पता किया था जो हिंसा के समय वहां मौजूद थी. कई सबूतों और लिंक्स मिलने के आधार पर ऑल्ट न्यूज़ ने इसकी पुष्टि की कि ये नकाबपोश महिला ABVP की सदस्य कोमल शर्मा थी.

इसी तरह, एक JNU स्टूडेंट इंडिया टुडे के सामने 5 और 6 जनवरी के बीच हुई हिंसा में हाथ होने की बात क़ुबूल करते हुए पकड़ा गया था. इसके बाद ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि ये स्टूडेंट ABVP से जुड़ा हुआ था.

एक बार फिर CAA के खिलाफ़ प्रदर्शनों और उसके बाद हुए दिल्ली दंगों की तरफ़ रुख करते हैं. गृहमंत्री अमित शाह ने एक “फै़क्ट फ़ाइंडिंग” रिपोर्ट स्वीकार की थी जिसमें ग़लत जानकारी की भरमार थी और साथ ही उन्होंने ऑप-इंडिया को कई मौकों पर अपना स्रोत बताया था.

वहीं, कुछ ऐसे मौके भी रहे जब प्रो-सीएए पक्ष के लोगों के खिलाफ़ भी भ्रामक सूचना फैलाई गयी. उदाहरण के तौर पर, जाफ़राबाद में गोली चलाने वाले को प्रो-सीएए दल का बताया गया था और कुछ दावों में ये भी कहा गया था कि उसे भाजपा दिल्ली के नेता कपिल मिश्रा के साथ देखा गया था.

कई लोगों ने एक पुरानी क्लिप शेयर करते हुए पुलिस पर दंगों के दौरान बर्बरता करने के आरोप लगाये गये. ये क्लिप ज़रूर पुरानी थी लेकिन दंगों के दौरान भी पुलिस की एक बर्बर हरकत कैमरे में कैद हुई थी जिसमें कुछ पुलिसवाले कुछ घायल नौजवानों पर ज़बरदस्ती राष्ट्रीय गान गाने का दबाव डाल रहे थे.

कोरोना वायरस से जुड़ी भ्रामक जानकारी और मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने वाली सूचनाएं शेयर की गईं

दिल्ली का निज़ामुद्दीन जब कोविड-19 हॉटस्पॉट बना था तब सोशल मीडिया पर ऐसी ग़लत सूचनाओं और पोस्ट्स की बाढ़ आ गयी थी जिनमें वायरस के फैलने के लिए मुस्लिम समुदाय को दोष दिया गया था.

एक बुज़ुर्ग मुस्लिम ठेलेवाले पर इसलिए FIR दर्ज की गयी थी क्यूंकि उसने अपने ठेले पर पानी की बोतल से हाथ धुला था. एक तरफ़ FIR में लिखा था कि बुज़ुर्ग ने उसी बोतल का पानी फलों पर छिड़का था, सोशल मीडिया में इसे तोड़-मरोड़ कर शेयर करते हुए फ़र्ज़ी दावा किया गया कि ठेलेवाले ने फल पर पेशाब छिड़का है.

सूफ़ी रिवाज़ों का वीडियो ये कहते हुए शेयर किया गया था कि मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग जान-बूझ कर कोरोना वायरस फैलाने के लिए छींक रहे हैं.

कई अन्य वीडियो इसी तरह शेयर किये गये और संक्रमण फैलाने का ग़लत आरोप लगाया गया- बर्तन चाटने का वीडियो, बिखरे नकदी नोट और खाने में थूकने जैसे दावे.

गुजराती में एक ऑडियो भी वायरल हुआ था. सूरत में मुस्लिम व्यापारियों पर कोरोना वायरस फैलाने का ग़लत आरोप लगाया गया था.

एक रिपोर्ट में हमने बताया था कि कैसे पेट्रोल पंप पर एक विकलांग मुस्लिम व्यक्ति से नोट गिर गए और इसे पत्रकार विकास भदौरिया और टीवी9 गुजराती समेत कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने कोरोना संक्रमण से जोड़ा. इस व्यक्ति के अपने हाथ की चोट दिखाने के बावजूद किसी भी ट्वीट को नहीं हटाया गया.

एक अन्य क्षेत्रीय मीडिया आउटलेट पब्लिक टीवी ने फ़र्ज़ी सूचना चलायी थी कि कर्नाटक में मुस्लिम नौजवानों ने ‘धार्मिक वजहों’ से कोरोना वैक्सीन लेने से मना कर दिया. ऑप-इंडिया और माय नेशन ने भी यही दावा किया. ये दावा सिर्फ़ एक स्थानीय निवासी की बात पर किया गया और चैनल ने किसी स्थानीय स्वास्थ्यकर्मी से बात करने की ज़हमत नहीं उठाई. ऑल्ट न्यूज़ ने जब वहां की अथॉरिटीज़ से संपर्क किया तो पाया कि ये दावा पूरी तरह ग़लत है.

ऐसा ही एक अन्य दावा हिंदी आउटलेट्स न्यूज़ 24, पंजाब केसरी, अमर उजाला, टाइम्स नाउ हिंदी और न्यूज़18 ने किया था. उन्होंने ग़लत रिपोर्टिंग करते हुए कहा था कि ईरान, इटली और चीन के मुस्लिम समुदाय के विदेशी नागरिक कोरोना महामारी के दौरान बिहार की एक मस्जिद में छिपे थे. पता चला कि वो लोग भारत में कोरोना के केस आने से पहले ही किर्गिस्तान से आ चुके थे.

इस महामारी में मुस्लिम समुदाय के बीच भी कई मौकों पर भ्रामक दावे फैले, जैसे- मुस्लिम समुदाय को कोरोना नहीं हो सकता. वायरल मेसेज में दावा किया गया कि गैर-मुस्लिम नमाज़ पढ़ रहे हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने नमाज़ पढ़ी और चीन ने महामारी को देखते हुए कुरान पर लगा हुआ प्रतिबन्ध हटा दिया.

प्रवासी मज़दूरों के संकटकाल में भ्रामक मीडिया रिपोर्ट्स

कोविड-19 का संक्रमण रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाये जाने के बाद लाखों मजदूरों को अपने गांव लौटना पड़ा था. इसे लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया के कई चैनलों ने ग़लत सूचना प्रसारित की थी. मुंबई पुलिस ने 14 अप्रैल को ABP मांझा के रिपोर्टर राहुल कुलकर्णी समेत 11 लोगों को गिरफ़्तार किया. आरोप था कि वो मुस्लिम समुदाय के बारे में वो अफ़वाह फैलाये जाने में शामिल थे जिसके कारण बांद्रा स्टेशन के पास करीब 2,000 प्रवासी मज़दूर इकठ्ठा हो गए थे. रिपोर्टर ने रेलवे के एक इंटरनल डॉक्युमेंट का हवाला देते हुए दावा किया था कि प्रवासियों को स्पेशल ट्रेनों से घर भेजा जाएगा. ABP ग्रुप के हिंदी चैनल ने भी इसका प्रसारण किया और लोगों के इकठ्ठा होने को ‘साज़िश’ बता दिया. ABP ने ऐसा इसलिए किया क्यूंकि वहां पास ही में एक मस्जिद थी. उसी दिन ABP न्यूज़ की ऐंकर रूबिका लियाक़त ने ABP के ऑफ़िशियल फे़सबुक पेज से एक लाइव किया और अपने ही दावे को ग़लत बताते हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों के वहां इकठ्ठा होने की बात को ग़लत करार दिया. सिर्फ़ एक दिन के अन्तराल में ABP ग्रुप ने अफ़वाह फैलाई, मुस्लिम समुदाय के बारे में भ्रामक दावा किया और उसके बाद खुद ही उन दावों को ग़लत भी बता दिया.

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में हुई प्रवासी मज़दूर की मौतों को लेकर की गयी रिपोर्ट्स को सरकार के फै़क्ट-चेकिंग विंग PIB फै़क्ट-चेक ने फ़र्ज़ी बता दिया था. PIB ने दावा किया कि मृतक या तो पहले से किसी शारीरिक समस्या से पीड़ित थे या हाल ही में उनका इलाज कराया गया था. लेकिन PIB ने अपने दावों को सही साबित करने के लिए सबूत के तौर पर एक भी मेडिकल रिपोर्ट नहीं शेयर की. ऑल्ट न्यूज़ ने PIB के चार ‘फै़क्ट-चेक’ का फै़क्ट-चेक किया जिसमें से तीन बेबुनियाद निकले.

एक अन्य ‘फै़क्ट-चेक’ में PIB ने दावा किया कि श्रमिक ट्रेन में अरवीना खातून नाम की जिस 23 वर्षीय महिला की मौत हुई, वो लम्बे समय से बीमार थी. ऑल्ट न्यूज़ ने अरवीना के माता-पिता, देवरानी और भाई से बात की. इन सभी ने सरकार के दावे का खंडन किया.

यहां तक कि ऐसा भी देखने को मिला जब भारत के सॉलिसिटर जनरल ने महामारी को लेकर सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को निशाना बनाने के लिए व्हाट्सऐप फ़ाॅरवर्ड का सहारा लिया.

कोविड-19 से जुड़ी मेडिकल जानकारी में कई मौकों पर भ्रम फैलाया गया

महामारी के दौरान वायरस से बचने और इलाज को लेकर भी मेडिकल से जुड़ी कई ग़लत जानकारियां भी लोगों तक पहुंचीं. सबसे बड़े भ्रामक दावों में से एक था- होमियोपैथी दवाई आर्सेनिकम एल्बम 30 से इम्युनिटी का मज़बूत होना. एक तरफ़ आयुष मिनिस्ट्री ने ये दवा लेने के लिए ज़ोर डाला वहीं ऐसी कोई रिसर्च सामने नहीं आई जिसमें कहा गया हो कि आर्सेनिकम एल्बम 30 इंसानों या जानवरों में इस संक्रमण से बचाने के लिए इम्युनिटी बूस्ट करेगा.

आयुष मंत्रालय ने भी क्वाथ (काढ़ा) को प्रमोट करते हुए दावा किया था कि कोविड-19 से लड़ने के लिए काढ़ा पिया जाना चाहिए जो कि इम्युनिटी ‘बूस्ट’ करता है. ऑल्ट न्यूज़ साइंस ने एक रिपोर्ट भी पब्लिश की थी जिसमें बताया गया है कि हमारे अंदर मौजूद इम्युनिटी को बरक़रार रखने के लिए एक स्वस्थ लाइफ़स्टाइल अपनाने की ज़रूरत होती है. कोई गोली खाने या काढ़ा पीने से इम्यून सिस्टम तेज़ी से ‘बूस्ट’ नहीं होता. मेडिकल साइंस में ‘इम्युनिटी बूस्टर’ शब्द का कोई आधार नहीं है, इसके बावजूद आयुष मंत्रालय समेत कई मीडिया आउटलेट्स ने इस शब्द को दोहराना जारी रखा.

आयुर्वेद द्वारा सुझाये गए घरेलू उपाय के बारे में भी ऑल्ट न्यूज़ साइंस ने सच्चाई बताई थी. इनके अलावा भी कोविड-19 से जुड़े भ्रामक दावे किये गये, जैसे- कोरोनावायरस एक बैक्टीरियल इन्फ़ेक्शन है, WHO ने दावा किया था कि असिम्प्टोमैटिक मरीज़ संक्रमण नहीं फैला सकते हैं और कोरोना वायरस मानव निर्मित वायरस है.

इसके बाद ऑल्ट न्यूज़ साइंस ने पतंजलि द्वारा दिए गए उन सबूतों का फै़क्ट-चेक किया था जिनके आधार पर पतंजलि ने दावा किया था कि कोरोनिल कोविड-19 को ठीक कर सकता है.

भारत-चीन विवाद के बारे में मीडिया ने ग़लत जानकारी दी

15 जून को भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हो गयी थी जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गए. चीन सरकार ने अपने हताहत हुए सैनिकों के बारे में कोई जानकारी सार्वजानिक नहीं की. इसके बाद मीडिया ने इससे जुड़े ग़लत दावे किये. आजतक ने 31 अगस्त को अपनी कथित ‘एक्सक्लूज़िव’ फ़ुटेज ब्रॉडकास्ट करते हुए सीमा पर हुए टकराव में ’40 चीनी जवानों’ के मारे जाने का दावा किया. आजतक के इंग्लिश साथी इंडिया टुडे ने भी यही ब्रॉडकास्ट किया. टाइम्स ने दावा किया, “PLA की 106 कब्रों की तस्वीर ने खुलासा किया कि 15 जून को गलवान में हुई झड़प में कितने ज़्यादा चीनी सैनिक मारे गये.” स्वराज्य ने टाइम्स नाउ की इस रिपोर्ट के आधार पर आर्टिकल पब्लिश कर दिया था. न्यूज़ एक्स और ABP ने भी अपने ब्रॉडकास्ट में दावा किया कि गलवान की झड़प में मारे गए 30 से ज़्यादा चीनी सैनिकों की कब्रें देखी गयी हैं.

मालूम पड़ा कि जिन कब्रों की फ़ुटेज इन चैनलों ने दिखाई, वो कांगक्सिवा में चीनी सेना के कब्रिस्तान में दिख रहीं 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए PLA सैनिकों की कब्रें थीं.

इससे पहले, कुछ मेनस्ट्रीम मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों ने गलवान में हुई झड़प में ’43 चीनी सैनिकों के मारे जाने’ का दावा किया था. ये दावा ANI के ट्वीट पर आधारित था जिसमें बताया गया था कि ‘स्रोतों’ से ये जानकारी मिली है और 43 चीनी जवानों के हताहत होने दावा किया गया था (जिसमें मृत और घायल दोनों शामिल हैं). न ही चीन की तरफ़ से कोई आंकड़े सार्वजानिक किय गए और न ही किसी बड़े रक्षा पत्रकार ने PLA के जवानों की मौत के बारे में कोई पुष्टि की. इसके बावजूद ये न्यूज़ बड़े स्तर पर वायरल हुई थी.

इसके अगले दिन फिर एक बार बिना किसी सबूत या कन्फ़र्मेशन के कहा गया कि सीमा पर हुए टकराव में 5 चीनी सैनिकों की मौत हुई है. इन सभी ‘ख़बरों’ का सोर्स एक इंडियन अकाउंट था जिसके बाद भारतीय मीडिया और पत्रकारों ने इस अनवेरिफ़ाइड सूचना को जमकर शेयर किया.

इसी बीच लोगों तक पहुंचने वाली सबसे मूर्खता भरी रिपोर्टिंग थी- टाइम्स नाउ का एक व्हाट्सऐप फ़ॉरवर्ड में दिए गए नाम पढ़ना और उन्हें झड़प में मारे गये चीनी सैनिक बताना.

ऑल्ट न्यूज़ से इसी मुद्दे से जुड़े एक और दावे पर रिपोर्ट किया. कांग्रेस सदस्यों ने पांगोंग झील के चीन वाले हिस्से का एक वीडियो शेयर करते हुए दावा किया था कि चीन ने झील के भारतीय हिस्से में पर्यटन शुरू कर दिया. हमने इस लोकेशन को गूगल अर्थ और चीनी वेबसाइट्स की मदद से वेरीफ़ाई किया और ये दावा ग़लत पाया.

किसान आंदोलनों को लेकर ग़लत सूचनाओं की भरमार

सरकार द्वारा लाये गये 3 नए कृषि कानूनों के खिलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों को लेकर लगातार ग़लत सूचनाएं शेयर हो रही हैं. कई लोगों ने आन्दोलन को बदनाम करने के लिए इसमें पाकिस्तान और खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाये जाने की बात कही. यूके और अमेरिका के पुराने वीडियो शेयर करते हुए इन दावों को बढ़ावा दिया गया.

ये भी दावा किया गया कि इस प्रदर्शन के पीछे मुस्लिम समुदाय है, न कि असली किसान. मुस्लिम समुदाय के एक व्यक्ति की पुरानी तस्वीर, जिसमें उसने पगड़ी पहनी हुई है, शेयर करते हुए कहा गया कि इसने किसान बनकर प्रदर्शन में हिस्सा लिया.

इसी तरह 2011 के एक वीडियो को ग़लत दावों के साथ शेयर किया गया था.

सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने भी ‘एक खुशहाल दिख रहे किसान’ की तस्वीर विज्ञापन में लगाते हुए ये दिखाने की कोशिश की कि किसान नए बिल से संतुष्ट हैं. लेकिन जिस ‘खुशहाल दिख रहे किसान’ की तस्वीर का भाजपा ने इस्तेमाल किया, मालूम पड़ा कि वो सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शनरत है.

भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने एक अधूरी क्लिप शेयर करते हुए जताने की कोशिश की कि पुलिस प्रदर्शनकारियों पर उतनी बर्बरता नहीं कर रही जितना लोग दिखा रहे हैं.

लव जिहाद’ को वैधता देने की कोशिश

उत्तर प्रदेश सरकार ने कथित ‘लव जिहाद’ रोकने के लिए धर्मान्तरण विरोधी कानून बनाया. इसके बाद सोशल मीडिया यूज़र्स ने महिलाओं के साथ हुई हिंसा के कई पुराने वीडियो और क्लिप्स शेयर किये और मुस्लिम समुदाय पर आरोप लगाने शुरू कर दिए.

एक पुराने सूटकेस में एक महिला का शव बरामद होने पर लोगों ने कहा कि मुस्लिम शख्स ने उसे प्यार के जाल में फांसने के बाद उसकी हत्या कर दी. असल में वो महिला ख़ुद मुस्लिम समुदाय की थी और ये मामला कथित ‘ऑनर किलिंग’ का था.

इसी तरह बांग्लादेश में घरेलू हिंसा का एक वीडियो भी ऐसे ही ग़लत दावों के साथ शेयर किया गया था.

ब्राज़ील में एक महिला की हत्या का वीडियो भारतीय सोशल मीडिया यूज़र्स ने ‘लव जिहाद’ के ऐंगल के साथ शेयर किया.

मध्य प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के ऐंटी-मुस्लिम रवैये और भ्रम फ़ैलाने वाले पोस्ट्स को बढ़ावा देने का ये नतीजा हुआ कि भोपाल में एक हिन्दू समूह के लोग एक बर्थडे पार्टी में घुस कर उनका वीडियो बनाने लगे. पार्टी में लड़के और लड़कियां शामिल थे. कुछ लड़के मुस्मौलिम समुदाय के भी थे. इसे मुद्दा बनाकर इन लोगों ने ‘लव जिहाद’ का दावा किया.

साल 2020 अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ़ दुष्प्रचार का साल रहा- पहले ऐंटी-सीएए प्रदर्शनों के दौरान मुस्लिम और फ़िर किसान आन्दोलन में सिख समुदाय के लोग. लेकिन जिस स्तर पर मुस्लिम समुदाय को बदनाम किया गया वो बहुत ही चिंताजनक है. इस समुदाय को कोरोनावायरस फैलाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया और मेनस्ट्रीम मीडिया की इससे जुड़ी ‘ख़बरों’ ने इस फ़र्ज़ी नेरेटिव को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. साल खत्म हो चुका है, किसान आन्दोलन जारी है, वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव भी 2021 की दहलीज़ पर खड़ा है. ऐसे में फ़र्ज़ी सूचनायें फैलने-फैलाने का सिलसिला दूर-दूर तक कम होता नज़र नहीं आ रहा है.

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.

Tagged:
About the Author

Pooja Chaudhuri is a senior editor at Alt News.