समाचार व विचारों के प्रचार के वैकल्पिक मंच के तौर पर हालांकि सोशल मीडिया शानदार भूमिका निभाता है लेकिन झूठी खबरों को प्रचारित करने और लोकप्रिय बनाने के लिए भी सोशल मीडिया कुख्यात है। वर्ष 2017 भी इस लिहाज से अलग नहीं रहा जबकि हमने अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गुमराह करने वाली और झूठी जानकारी में तेजी से वृद्धि होते हुए देखा। पिछले साल सोशल मीडिया पर फैलाई गई शीर्ष झूठी खबरों की एक झलक यहां पेश की जा रही है।

1. बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने नेहरु की बहन के साथ स्नेहभरी तस्वीरों को दिखाते हुए यह दावा किया कि यह हार्दिक पटेल का डीएनए है

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय झूठी खबरे फैलाने वाले सामान्य दोषी व्यक्ति रहे। उन्होंने अपने ट्विटर खाते से पंडित जवाहरलाल नेहरु की कुछ फोटो का कोलाज अपलोड किया जिसमें भूतपूर्व प्रधानमंत्री को अलग-अलग महिलाओं के साथ दिखाया गया है। मालवीय ने दावा किया कि यह हार्दिक पटेल का डीएनए है जिसे गुजरात चुनावों के दौरान जारी की गई पाटीदार नेता, हार्दिक पटेल की सीडी से जोड़ा गया था। नेहरु की छवि खराब करने के मकसद से यह फ़ोटो अपलोड किया गया था हालांकि इन फोटो में उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित (ऊपर बाएं और ऊपर दाएं) और उनकी भांजी नयनताला सहगल (नीचे दाएं) मौजूद थीं। ऑल्ट न्यूज ने इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट दी थी जिसे यहां पढ़ा जा सकता है।

2. बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने शरारतपूर्ण तरीके से संपादित किए गए वीडियो क्लिप साझा करके रवीश कुमार की छवि खराब करने की कोशिश की

अमित मालवीय फिर से अपने पुराने काम में जुटे थे, इस बार उन्‍होंने पत्रकार रवीश कुमार के एक भाषण को दुर्भावनावश संपादित करके पोस्ट किया ताकि ऐसा लगे जैसे कि रवीश कुमार किसी राजनीतिक पार्टी की ओर से बोल रहे हैं जिससे रवीश की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए जा सकें। यह पता चला कि रवीश कुमार की यह बात कि ‘मैं अपनी पार्टी के लोगों से कहता हूँ‘ 10 मिनट के एक भाषण का मात्र एक हिस्सा था जो उन्होंने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में दिया था। रवीश कुमार यहां किसी राजनीतिक पार्टी का उल्लेख नहीं कर रहे थे लेकिन शायद अमित मालवीय के लिए इस तथ्य का कोई मतलब नहीं है जो वैसे भी झूठी और गुमराह करने वाली जानकारी फैलाने के लिए कुख्यात हैं।

3. चंडीगढ़ में पीछा करने की घटना का सामना करने वाली लड़की को शर्मिंदा करने के लिए पुरानी, असंबंधित फोटो का इस्तेमाल करना

बीजेपी नेता शाइना एनसी और सुप्रीम कोर्ट के वकील उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने चंड़ीगढ़ में एक लड़की का पीछा करने की घटना के बाद सोशल मीडिया में निम्नलिखित फोटो प्रचारित की थी, ध्यान रहे कि इस घटना में हरियाणा बीजेपी प्रमुख का बेटा आरोपी था। यह दावा किया गया कि इस घटना का सामना करने वाली लड़की ने आरोपी, विकास बराला के साथ फोटो खिंचवाई थी। ऐसी घटना का सामना करने वाली लड़की को शर्मिंदा करने का नैरेटिव इसलिए तैयार किया गया ताकि लड़की की ओर उंगली उठाई जाए और यह संकेत दिया जाए कि उसने झूठी शिकायत दर्ज कराई है। ऑल्‍ट न्‍यूज ने इस घटना का डटकर मुकाबला करने वाली लड़की से बात की जिसने स्पष्ट किया कि इस फोटो में दिख रहा पुरुष विकास बराला नहीं है।

4. ग्वाटेमाला में भीड़ द्वारा हत्या के वीडियो को मुसलमानों की भीड़ द्वारा मारवाड़ी महिला को जिंदा जलाने के वीडियो के तौर पर पेश किया गया

हिन्दुत्व का समर्थन करने वाले कई सोशल मीडिया पेज और हैंडलों ने भीड़ द्वारा किया गया हत्या का एक वीडियो व्यापक रूप से प्रचारित किया गया। इस वीडियो में, महिला को भीड़ द्वारा मारे जाते हुए दिखाया गया है। वीडियो के साथ यह टैक्स्ट है, ‘आन्ध्र प्रदेश में एक हिन्दू मारवाड़ी लड़की ने एक मुस्लिम लड़के से शादी की। आज, मुसलमान समुदाय से संबंधित कुछ लोगों ने उसे पीटा और जिंदा जला दिया क्येांकि उसने बुरका पहनने से मना कर दिया था – कृपया इस दिल दहला देने वाले वीडियो को देखें।‘ उक्त वीडियो असल में ग्वाटेमाला का है लेकिन इसे सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की मंशा के साथ एक भारतीय महिला के तौर पर पेश किया गया।

5. पाकिस्तान के भारत से जीतने पर मुसलमानों द्वारा जश्न मनाने का गुमराह करने वाला वीडियो प्रचारित किया गया

18 जून, 2017 चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल मैच में पाकिस्तान ने भारत को हराया। इसके अगले ही दिन सोशल मीडिया पर दावा करते हुए एक वीडियो सामने आया कि पाकिस्तान के भारत से जीतने पर भारतीय मुसलमानों को जश्न मनाते हुए देखा गया। बाद में यह पता चला कि यह एक गुमराह करने वाला वीडियो था – इनमें से एक वीडियो पाकिस्तान का था और दूसरा, जिसकी फोटो ऊपर दिखाई गई है, भारत में वडोदरा का था और इसे दिसंबर 2016 में शूट किया गया था। इन वीडियो का कोई भी लेना-देना चैम्पियंस ट्रॉफी या क्रिकेट से नहीं था लेकिन इस सच्‍चाई के बावजूद सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथियों द्वारा इसे वायरल किए जाने में कोई फर्क नहीं पड़ा।

6. गुमराह करने वाले वीडियो में दावा किया गया कि किसी नौकरशाह की बेटी की शादी में राष्ट्रपति के साथ दुर्व्यवहार हुआ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तमिलनाडू में शादी समारोह में शामिल होने का एक वीडियो वायरल हो गया। कम रिजोल्यूशन के इस वीडियो में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलते-जुलते दिखने वाले व्यक्ति को कोने में खड़ा देखा जा सकता है। वीडियो के साथ दिए गए कैप्शन में बताया गया, ‘दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्यरत एक आईएएस अधिकारी श्री सोमनाथन की बेटी की शादी। भारत के राष्ट्रपति को ध्यान से देखें। कृपया देखें कि भारत के राष्ट्रपति के साथ किस तरह का व्यवहार किया जा रहा है।‘ हालांकि इस वीडियो में दिख रहे व्यक्ति राष्‍ट्रपति नहीं थे बल्कि तमिलनाडू के गर्वनर, बनवारी लाल पुरोहित थे।

7. बांग्लादेश के वीडियो को कश्मीरी छात्रों द्वारा सीआरपीएफ जवान की हत्या करते हुए पेश किया गया

‘कुछ समय पहले, मेरे एक मित्र जो श्रीनगर में पढ़ते हैं, उसने यह वीडियो भेजा। यह आज का वीडियो है। कृपया सुनिश्चित करें कि यह न्यूज चैनलों तक पहुंच जाए। कश्मीरी छात्र सीआरपीएफ के जवान को पीट रहे हैं।’

यह एक व्यक्ति की हत्या के दर्दनाक वीडियो के साथ दिया गया कैप्शन था। हालांकि यह वीडियो बांग्लादेश का था और इसका कोई भी संबंध कश्मीर या सीआरपीएफ से नहीं था। ऑल्ट न्यूज ने पर्दाफाश किया कि किस तरह इस वीडियो को सोशल मीडिया पर अलग-अलग कैप्शन के साथ प्रचारित किया गया जिनका मकसद अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत पैदा करना था।

8. घायल होने पर भी निर्देश देते हुए‘ मेजर प्रफुल्ल का फेक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ

ये है असली हिंदुस्तानी..last clip of Major Prafulla giving instructions to his unit though shot and collapsed thereafter..नमन 🙏🚩🚩

Posted by AAZAAD on Tuesday, 26 December 2017

हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में एक घायल सैनिक द्वारा उसकी यूनिट को निर्देश देते हुए दिखाया गया। भूतपूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह और आप नेता अलका लांबा भी यह वीडियो शेयर करने वाले लोगों में शामिल थे। यह दावा किया गया कि इस वीडियो में दिख रहा व्यक्ति मेजर प्रफुल्ल है जिसने जम्मू कश्मीर के केरी सेक्टर में युद्धविराम उल्लंघन के दौरान अपनी अंतिम सांस तक अपने कर्तव्य निभाना नहीं छोड़ा। यह सामने आया कि यह वीडियो मेजर प्रफुल्ल का नहीं बल्कि सहायक कमांडेंट सतवंत सिंह का है और यह 2009 का था।

9. रोहिंग्या के खिलाफ नैरेटिव तैयार करने के लिए बच्चों की फोटो का दुरुपयोग किया गया

म्यांमार में रोहिंग्या संकट बढ़ने पर, सोशल मीडिया पर ऐसी महिलाओं की गुमराह करने वाली तस्वीर की बाढ़ आ गई जिनके बारे में दावा किया गया कि ये रोहिंग्या महिलाएं थीं। सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही तस्वीर का मकसद रोहिंग्या समुदाय की छवि ख़राब करना था। ऑल्ट न्यूज ने रिपोर्ट दी कि कैसे ये फोटो रोहिंग्या महिलाओं की नहीं थीं बल्कि इन्हें इस तरह पेश किया गया ताकि इस समुदाय और इसकी महिलाओ के खिलाफ एक नैरेटिव तैयार किया जाए और इसे बनाए रखा जाए। उपरोक्त फोटो मूल रूप से ब्राजील में गेराफाओ दो नोर्ते की है और फोटो में दिख रही लड़की एक चिकित्सकीय समस्या से पीड़ित थी जिसकी वजह से उसका पेट फूल गया था।

10. शंखनाद ने एक विवादास्पद उद्धरण को महात्मा गांधी का उद्धरण बताया जो बाद में फर्जी निकला

शंखनाद ने ट्विटर पर Rightlog.in के एक लेख का लिंक पोस्ट किया जिसमें यह दावा करते हुए संदेहास्पद स्रोतों का उद्धरण दिया गया कि महात्मा गांधी ने हिन्दू और सिख महिलाओं को ‘मुसलमान बलात्कारियों के साथ सहयोग करने‘ के लिए कहा था। जैसी कि उम्मीद थी, यह जानकारी झूठी पाई गई क्योंकि उपरोक्त उद्धरण उस किताब में मौजूद नहीं था जिसका संदर्भ लेख में दिया गया था।

11. शरारतपूर्ण संपादन के साथ पीएम मोदी के इंटरव्यू की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर फैलाई गई

प्रधानमंत्री मोदी की शैक्षिक योग्यता के बारे में विवाद के बावजूद, पीएम मोदी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहा है जिसमें उन्हें यह कहते हुए सुना जाता है कि उन्होंने स्कूल के बाद पढ़ाई नहीं की। हालांकि यह पता चला कि वीडियो क्लिप की गई थी क्योंकि इस वीडियो में बाद वाले हिस्‍से में पीएम मोदी कहते हैं कि उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा की डिग्री दूरस्थ शिक्षा माध्यम से प्राप्त की।

12. बसीरहाट में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के लिए झूठी तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया

जुलाई 2017 में, पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के बसीरहाट सबडिवीजन में उस समय सांप्रदायिक हिंसा फैल गई जब काबा की एक काटी-छांटी गई तस्वीर प्रचारित हुई। सोशल मीडिया के माध्‍यम से इस तरह की और फ़ोटोशॉप की गई फ़ोटो द्वारा हिंसा को अधिक भड़काया गया ताकि इस क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव बना रहे। उदाहरण के लिए उपरोक्त फ़ोटो एक भोजपुरी फिल्म का स्थिर चित्र मात्र है जिसे मुसलमानों द्वारा हिन्दू महिला के उत्पीड़न के तौर पर पेश किया गया था। भड़काऊ संदेशों और तस्वीरों का सहारा लेने की वजह से पहले से ही तनावपूर्ण बनी हुई स्थिति और अधिक बिगड़ गई।

13.व्हाट्सऐप पर अफवाह फैलने की वजह से झारखंड में सात लोगों की भीड़ द्वारा निर्ममता से हत्या कर दी गई

इस साल मई में, जब व्हाट्सऐप पर यह अफवाह फैलने लगी कि बच्चे पकड़ने वाला एक गिरोह इस इलाके में सक्रिय है और घूम रहा है तो झारखंड में सात लोगों को क्रूरतापूर्वक मार डाला गया। इन अफवाहों के फलस्वरूप पैदा होने वाले डर, असुरक्षा और संदेह की भावना के कारण भीड़ द्वारा हत्या किये जाने की घटनाएं हुईं।

इसके अलावा कई अन्य ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से झूठी खबरें फैलाई गईं। सांप्रदायिक तनाव पैदा करने वाली खबरें प्रसारित करने में महारत हासिल करने वाली वेबसाइट शंखनाद ने एक गाय का वीडियो प्रचारित किया जिसका चेहरा विस्फोट से क्षत-विक्षत हो गया था और कहा गया कि यह मुसलमानों का काम है जबकि सच्चाई कुछ और थी। एक बार फिर से शंखनाद ने यह दावा किया कि उत्तर प्रदेश के भदोही में मुसलमानों द्वारा स्वामी विवेकानंद की मूर्ति तोड़ी गई जबकि यूपी पुलिस ने इस दावे की हवा निकाल दी। सोशल मीडिया पर काफी फैलाई गई एक पुरानी तस्वीर में एक व्यक्ति को मोटरसाइकिल से बांधकर खींचते हुए दिखाया गया। यह दावा किया गया यह तस्वीर पाकिस्तान की है और इस व्यक्ति को इसलिए यातना दी जा रही है क्योंकि उसने ‘जय श्री राम‘ बोला था। यह फ़ोटो असल में फिलीस्तीन की थी और इसका पाकिस्तान से कोई भी लेना-देना नहीं था। दूसरी घटना में, दिल्ली में पटाखों पर बैन के बाद सोशल मीडिया पर एक फोटो यह कहते हुए फैलाई गई कि यह फैसला सुनाने वाले बेंच के प्रमुख, जस्टिस सीकरी और सोनिया गांधी के बीच संपर्क है। हालांकि फोटो में दिख रहे व्यक्ति श्री सीकरी नहीं बल्कि एक कांग्रेसी नेता थे।

सोशल मीडिया पर झूठी खबरों से होने वाले परिणाम अब एक बड़े बदलाव के बिंदु पर पहुच गए हैं। अफवाहों के आधार पर, भीड़ द्वारा लोगों की हत्याएं की जा रही हैं और दंगे भड़काए जा रहे हैं जैसा कि हमने झारखंड और बसीरहाट के मामले में देखा। केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह अनिवार्य है कि वे नीति और कार्रवाई के सहारे इन स्वाभाविक घटनाक्रमों से निपटने के लिए अधिक सक्रियता से काम करें लेकिन सत्ता की प्रतिक्रिया को देखते हुए कहा जा सकता है कि उम्‍मीद के मुताबिक अभी बहुत कुछ करना बाकी है। अपनी आसान उपलब्धता के साथ सोशल मीडिया, झूठी खबरें और गुमराह करने वाली जानकारी फैलाने वाले घृणित तत्वों का एक औजार बन गया है जिनका गुप्त मकसद हमेशा निर्दोष नहीं होता है। हम उम्मीद करते हैं कि फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उन जानकारियों को हटाने में अधिक सक्रियता से भूमिका निभाएंगे जिन्हें झूठा साबित किया जा चुका है।

डोनेट करें!
सत्ता को आईना दिखाने वाली पत्रकारिता का कॉरपोरेट और राजनीति, दोनों के नियंत्रण से मुक्त होना बुनियादी ज़रूरत है. और ये तभी संभव है जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर ऑल्ट न्यूज़ को डोनेट करें.

बैंक ट्रांसफ़र / चेक / DD के माध्यम से डोनेट करने सम्बंधित जानकारी के लिए यहां क्लिक करें.