साल 2022 रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर देश के कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों जैसी हेडलाइन बनने वाली घटनाओं का चश्मदीद रहा. ऐसी बड़ी घटनाओं ने मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर अपनी जगह बनाई रखी. देश की आधी आबादी से ज़्यादा लोगों ने इस डिजिटल युग में अपने हाथ में मौजूद स्मार्ट फ़ोन नामक प्रणाली के ज़रिए ख़बरें और सूचनाओं का ग्रहण किया. गौर करें कि ICUBE 2021 स्टडी के मुताबिक, भारत में ऐक्टिव इंटरनेट यूज़र्स की संख्या 69.2 करोड़ है. यानी, सुबह होते ही हमारे देश के लोग अखबार पकड़ने या टीवी ऑन करने से पहले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स के ज़रिए सूचनाओं का ब्रेकफास्ट करते हैं. ज़्यादातर मीडिया संगठन या न्यूज़ प्लेटफ़ॉर्म्स भी ब्रेकिंग न्यूज़ देने की होड़ में अपने वेब डेस्क पर ‘वायरल दावे’ को ख़बर के रूप में शेयर कर देते हैं. इस साल मेनस्ट्रीम मीडिया ग़लत जानकारी फैलाने में सबसे आगे रही.

ऑल्ट न्यूज़ ने इस साल तकरीबन 500 फ़ैक्ट-चेक्स आर्टिकल पब्लिश किये हैं. और ये सारी झूठी और भ्रामक सूचनाएं देश-विदेश में होनेवाली अलग-अलग इवेंट्स से जुड़ी हैं.

ऑल्ट न्यूज़ का हर एक आर्टिकल मेटाडेटा का सोर्स है. इन आर्टिकल्स में ग़लत जानकारियां के सोर्स (जैसे न्यूज़ आउटलेट्स, पॉलिटिकल पार्टियां, प्रमुख व्यक्तियों आदि), ग़लत जानकारियों के प्रकार (जैसे धार्मिक, राजनीतिक, सांप्रदायिक, इतिहास, रक्षा, अर्थशास्त्र वगैरह), और बाकी महत्वपूर्ण डेटा जिससे ग़लत जानकारियों के ट्रेंडज़ को समझा जा सकें. साल 2022 के राउन्डअप में ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने साल भर में पब्लिश किये गए 462 फ़ैक्ट-चेक्स रिपोर्ट्स में शामिल डेटा पॉइंट्स को जमा किया ताकि हम इस डेटा के ज़रिए साल भर में ग़लत जानकारियां शेयर करने वाले सोर्स और उनकी थीम के बारे में अपने रिडर्स को बता पायें. 2 हफ्तों की मेहनत के बाद ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने अपने फ़ैक्ट-चेक आर्टिकल्स के डेटा की छंटनी करने के बाद निचोड़ में निकली जानकारी को 2 अलग-अगल रिपोर्ट्स में पब्लिश करने का निर्णय किया. पहली रिपोर्ट में ऑल्ट न्यूज़ ने ग़लत सूचनाओं की केटेगरी और थीम के बारे में बात की है. वहीं दूसरा आर्टिकल ग़लत जानकारियों के सोर्स और टारगेट्स के बारे में है.

ऑल्ट न्यूज़ मेटाडेटा शृंखला की इस रिपोर्ट में हम आपको साल 2022 की हेडलाइन मेकिंग इवेंट्स के चलते शेयर की गई गलत जानकारियों के सोर्स (मीडिया, पॉलिटिकल पार्टियां, जनीमानी हस्तियां) और टारगेट्स के बारे में बताएंगे. वहीं हमारे मेटाडेटा 2022 शृंखला पर आधारित पहली रिपोर्ट आप यहां पर पढ़ सकते हैं जिसमें ग़लत जानकारियों की थीम और केटेगरी की बात की गई है.

हेडलाइन मेकिंग इवेंट्स के इर्दगिर्द रहा झूठे दावों जाल

इस साल हमने कई कथित ‘ख़बरों’ और दावों का फ़ैक्ट-चेक किया. हमने नोटिस किया कि ज़्यादातर मीडिया अपने संसाधनों का इस्तेमाल ख़बरें वेरिफ़ाई करने के लिए नहीं करतीं. इस डेटा रिपोर्ट में हमने साल 2022 की ऐसी ही कुछ फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट्स की बात की है जिसमें मीडिया, राजनीतिक पार्टियों और प्रमुख व्यक्तियों द्वारा बिना कोई आधार या सबूत पेश किये ग़लत दावे किये गए हैं.

पॉलिटिकल पार्टियां जो ग़लत सूचनाएं शेयर करती दिखीं

यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस ने एक-दूसरे पर निशाना साधते हुए जमकर तरह-तरह के दावे शेयर किये. हमारे साल 2022 के फ़ैक्ट-चेक्स मेटा-डेटा के आधार पर हम ये कह सकते हैं कि पूरे साल में 124 फ़ैक्ट-चेक आर्टिकल्स ऐसे हैं जिसमें राजनीतिक पार्टियों और उनसे जुड़े नेताओं, कार्यकर्ताओं को ग़लत जानकारी शेयर करते हुए पाया गया है. वहीं भाजपा और उनसे जुड़े नेताओं ने सबसे ज़्यादा ग़लत जानकारियां शेयर की हैं जिसका हिस्सा 48.1% है. वहीं कांग्रेस और उससे जुड़े नेतागण, गलत जानकारियां शेयर करने में 33.8% के साथ दूसरे स्थान पर हैं. आम आदमी पार्टी और उनसे जुड़े नेता भी हमारे फ़ैक्ट-चेक आर्टिकल्स में 8 बार ग़लत जानकारियां शेयर करते हुए पाए गए है जो कि कुल डेटा का 10.4% हिस्सा है.

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से लेकर नवंबर में हुए चुनाव प्रचार तक भाजपा नेताओं ने कई बार ये दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने युद्ध रुकवाकर वहां फंसे भारतीय छात्रों को बाहर निकाला. जबकि शुरुआत में ही खुद विदेश मंत्रालय ने इस दावे का खंडन कर दिया था.

वहीं भारत जोड़ो यात्रा में भारी भीड़ दिखाने के लिए कई कांग्रेस नेताओं ने आंध्रप्रदेश में एक त्योहार में इकट्ठा हुई भीड़ का वीडियो शेयर किया और इस असंबंधित वीडियो के ज़रिए भारत जोड़ो यात्रा की वाहवाही की.

ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने इन आंकड़ों का ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया. हमने पाया कि पॉलिटिकल पार्टियों ने ये ग़लत दावे या तो अपनी पार्टी की वाहवाही करने में या फिर विपक्ष की पार्टी या उनके नेताओं पर निशाना साधते हुए किये हैं. हमारी मेटा डेटा के मुताबिक, साल 2022 में सबसे ज़्यादा टारगेट राहुल गांधी को किया गया है. वहीं नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल को भी काफी बार ग़लत दावों के आधार पर टारगेट किया गया है.

जनवरी 2022 में भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा और BJP पंजाब के हैंडल ने राहुल गांधी की एक क्लिप ट्वीट कर कहा कि उन्होंने खाना खाते हुए मास्क पहन रखा है. जबकि ये दावा एक क्लिप वीडियो के आधार पर किया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 जनवरी को विश्व आर्थिक मंच (WEF) के ऑनलाइन दावोस एजेंडा 2022 शिखर सम्मेलन को संबोधित किया था. संबोधन के वक़्त पीएम मोदी अचानक से रुक गए थे. इसी मौके को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से जुड़े नेताओं ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए दावा किया था कि पीएम मोदी के टेलीप्रॉम्प्टर में खराबी आ गई और वो भाषण देते-देते रुक गए. जबकि तकनीकी खराबी की वजह से पीएम मोदी भाषण देते हुए रुक गए थे.

पॉलिटिकल पार्टियों से जुड़े नेतागण

साल भर में राजनीतिक नेताओं और पदाधिकारियों द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं की छंटनी करने पर ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि सबसे ज़्यादा गलत सूचनाएं भाजपा के नवीन कुमार जिंदल और प्रशांत पटेल उमराव ने शेयर की है. नवीन कुमार जिंदल और प्रशांत पटेल उमराव को हमने अपने फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट्स में 9-9 बार गलत सूचनाएं शेयर करते हुए पाया है. ये डेटा हमें 124 फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट्स में से मिला है जिसमें प्रमुख राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोगों द्वारा ग़लत जानकारियां शेयर करने के मामले को रिकॉर्ड किया गया है. वहीं अमित मालवीय और कपिल मिश्रा को क्रमशः 7 और 6 बार ग़लत सूचनाएं शेयर करते हुए पाया गया है. नीचे दिए गए चार्ट में उन प्रमुख नेताओं द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं के आंकड़े दिखाए गए हैं जिन्हें ऑल्ट न्यूज़ ने इस साल सबसे ज़्यादा भ्रामक जानकारियां शेयर करते हुए डॉक्यूमेंट किया है.

(सोर्स: साल 2022 के ऑल्ट न्यूज़ के तकरीबन 500 फ़ैक्ट-चेक्स में ऐसी 124 रिपोर्ट्स जिसमें प्रमुख राजनीतिक हस्तियों द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं को रिपोर्ट किया गया है.)

अप्रैल 2022 में भाजपा दिल्ली के प्रवक्ता नवीन कुमार जिंदल ने रामनवमी के दिन JNU में हुई हिंसा के बाद कुछ तस्वीरें ट्वीट कर ये झूठा दावा किया था कि ये छात्राएं घायल होने का नाटक कर रही थीं.

नवंबर में अमित मालवीय ने राहुल गांधी का एक वीडियो शेयर कर ये दावा किया कि राहुल गांधी ग़लत दिशा में आरती कर रहे हैं. ये वीडियो नर्मदा आरती का है जिसे राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान किया था. अमित मालवीय का दावा ग़लत था, राहुल गांधी सही दिशा में आरती कर रहे थे.

इन्फ्लुएंसर और वेरिफ़ाइड हैन्डल्स के पीछे छुपे चेहरों का सच

राजनीतिक पार्टियों से संबंध न रखने वाले लेकिन सोशल मीडिया पर अच्छी खासी फ़ॉलोइंग वाले अकाउंट्स भी कई बार ग़लत जानकारियां शेयर कर अपने फ़ॉलोवर्स को भ्रमित करते हुए पाए गए हैं. इस साल के 157 फ़ैक्ट-चेक आर्टिकल्स में ऐसे वेरिफ़ाइड और चर्चित लोगों द्वारा शेयर की गई ग़लत सूचनाओं को डॉक्यूमेंट किया गया है. नीचे चार्ट में ऐसी ही कुछ प्रमुख हस्तियों के नाम हैं जिन्हें हमने सबसे ज्यादा बार ग़लत जानकारियां शेयर करते हुए पाया है.

ऊपर दिए गए चार्ट में आप देख सकते हैं कि सुदर्शन न्यूज़ के पत्रकार सागर कुमार और भाजपा समर्थक प्रोपेगेंडा वेबसाइट क्रियेटली ने सबसे ज़्यादा बार ग़लत दावे शेयर किये हैं. ध्यान दें कि सागर कुमार के ट्विटर पर 84 हज़ार से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स हैं. क्रियेटली मीडिया का ट्विटर अकाउंट फिलहाल सस्पेन्ड कर दिया गया है. लेकिन आर्काइव्ज़ के मुताबिक, सस्पेन्ड होने से पहले इस अकाउंट के 1 लाख 39 हज़ार से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स थे. अब इतनी फ़ॉलोइंग वाले अकाउंट्स जब किसी भी तरह की ग़लत जानकारी शेयर करते हैं तो उसका असर उनके फ़ॉलोवर्स पर होना एक आम बात है.

सितंबर महीने में सुदर्शन न्यूज़ के सागर कुमार ने यूपी के सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में सेब, आइस-क्रीम और पनीर की सब्ज़ी मिलने का दावा करते हुए एक तस्वीर ट्वीट की. ये दावा पूरी तरह से भ्रामक था. क्रियेटली मीडिया ने ईरान में हिजाब को लेकर चल रहे प्रदर्शन का बताकर एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें महिलाएं नग्न अवस्था में सड़कों पर उतर आयी हैं. असल में ये वीडियो ईरान में चल रहे प्रदर्शन का नहीं था बल्कि महिलाओं के खिलाफ़ होने वाली हिंसा के विरुद्ध एक प्रदर्शन का दृश्य था.

इसके अलावा कॉलमिस्ट तारिक फ़तेह और डीडी न्यूज़ के अशोक श्रीवास्तव को ऑल्ट न्यूज़ ने 5-5 बार ग़लत जानकारी शेयर करते हुए पाया है. गौर करें कि तारिक फ़तह और अशोक श्रीवास्तव के ट्विटर पर क्रमशः 7 लाख और 2 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोवर्स हैं. अशोक श्रीवास्तव ने दिल्ली के सरकारी स्कूल में मदरसा चलाने का दावा करते हुए यूपी का वीडियो ट्वीट किया था. और तारिक फ़तेह के बारे में तो क्या कहें, अक्सर ऑल्ट न्यूज़ ने उन्हें ग़लत जानकारियां शेयर करते हुए पाया है. तारिक फ़तेह द्वारा शेयर की गई भ्रामक जानकारियों की लिस्ट इतनी लम्बी है कि हमने इस डिटेल्ड रिपोर्ट में डॉक्यूमेंट भी किया है.

प्रोमिनेंट मीडिया आउटलेट्स की ग़लत ख़बरें

यहां तक ऑल्ट न्यूज़ आपको प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और उनसे जुड़े नेताओं समेत चर्चित हस्तियों द्वारा शेयर की गई ग़लत जानकारियों के बारे में बता चुका है. बहरहाल अगर आपने ऑल्ट न्यूज़ को नियमित रूप से फ़ॉलो किया हो तो आपको पता ही होगा कि साल 2022 में मीडिया आउटलेट्स भी गलत दावे, ख़बरों के रूप में पेश करने से पीछे नहीं रहे हैं. नीचे चार्ट में मीडिया घरानों द्वारा साल भर में शेयर की गई ग़लत सूचनाओं के आंकड़े दिए गए है जिन्हें ऑल्ट न्यूज़ ने अपने फ़ैक्ट-चेक आर्टिकल्स में डॉक्यूमेंट किया है.

इस चार्ट में साफ दिख रहा है कि साल 2022 में 45 बार टाइम्स ग्रुप की चैनल्स (टाइम्स नाउ, टाइम्स नाउ नवभारत, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, इकनॉमिक टाइम्स, नवभारत टाइम्स, मिरर नाउ) को ऑल्ट न्यूज़ ने ग़लत ख़बरें शेयर करते हुए डॉक्यूमेंट किया है. वहीं मीडिया मिसरिपोर्ट के इस चार्ट में दूसरे पायदान पर है ज़ी न्यूज़ ग्रुप. ज़ी न्यूज़ और उससे जुड़ी सिस्टर चैनल्स को ऑल्ट न्यूज़ ने इस साल 32 बार झूठी ख़बरें पब्लिश करते हुए पाया है. इंडिया टुडे ग्रुप जिसमें मशहूर हिन्दी न्यूज़ चैनल आज तक भी शामिल है ने 23 बार रिपोर्ट होने के साथ तीसरा स्थान हासिल किया है. इंडिया टुडे और दैनिक जागरण इंटरनेशनल फ़ैक्ट चेकिंग नेटवर्क (IFCN) सर्टिफ़ाइड हैं और इन दोनों की फ़ैक्ट-चेकिंग टीम हैं.

दक्षिणपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ऑपइंडिया को हम इस साल 18 बार ग़लत सूचनाएं शेयर करते हुए रिपोर्ट कर चुके हैं.

उदाहरण के लिए मई महीने में NDTV, ABP न्यूज़ और पंजाब केसरी जैसे मीडिया आउटलेट्स ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दिल्ली के मंत्री सत्येन्द्र जैन को गिरफ़्तार करने की घटना को कवर किया था. इस घटना को लेकर मीडिया आउटलेट्स ने सत्येन्द्र जैन की एक तस्वीर के साथ दावा किया उनके मुंह से खून निकल रहा है. जबकि उनके चेहरे पर पेड़ की परछाई साफ दिख रही थी.

ऑल्ट न्यूज़ ने अपने मेटा डेटा के ज़रिए पता लगाया कि इस साल मीडिया ने सार्वजनिक जगहों पर कथित रूप से पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगने के झूठे दावे कई बार किये हैं. उदाहरण के लिए PFI प्रदर्शन में ‘पाकिस्तान ज़िन्दाबाद’ की कथित नारेबाज़ी होने का दावा ANI, NDTV, द हिंदू, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया समेत कई मीडिया आउटलेट्स ने किया था. जबकि ऑल्ट न्यूज़ ने अपने डिटेल्ड फ़ैक्ट-चेक में इस दावे को सरासर गलत पाया. इसके अलावा भी कई बार मीडिया संगठनों ने पाकिस्तान समर्थक नारेबाज़ी होने का झूठा दावा बतौर ख़बर चलाया है. (उदाहरण 1, उदाहरण 2)

इस साल स्क्रिप्टेड वीडियोज़ का एक अलग ही दौर चला. कंटेन्ट क्रियेटर्स अलग-अलग मुद्दों पर कई तरह के वीडियोज़ बनाते हैं और उसमें सिर्फ़ नाम के लिए चंद सेकंड के टाइमफ़्रेम में डिसक्लेमर रख देते हैं. इसे बिना वीडियो पॉज़ किये पढ़ना लगभग मुश्किल है. इसी वजह से ऐसे स्क्रिप्टेड वीडियोज़ असली मानकर सोशल मीडिया यूज़र्स शेयर कर देते हैं. हालांकि इस साल तो ऐसे नाटकीय वीडियोज़ मीडिया ने भी असली घटना के बताकर शेयर कर दिए. टाइम्स नाउ, दैनिक जागरण जैसे और कुछ मीडिया आउटलेट्स ने नशे में धुत दूल्हे द्वारा साली को वरमाला पहनाने का ड्रामा वीडियो असली घटना का बताकर पब्लिश कर दिया. ऐसे ही दहेज न मिलने पर शादी से इनकार कर रहे दूल्हे का नाटकीय वीडियो भी द इंडियन एक्सप्रेस, NDTV, DNA इंडिया जैसे कुछ मीडिया संगठनों ने चलाया था.

राइटविंग प्रोपेगेंडा चैनल सुदर्शन न्यूज़ ने अप्रैल महीने में शो करते हुए दावा किया था कि सरकारी कंपनी पवन हंस लिमिटेड में सिर्फ मुस्लिमों को ही नौकरी दी गई है. लेकिन जब ऑल्ट न्यूज़ ने तफ़तीश की तो पाया कि सुदर्शन न्यूज़ द्वारा चलाया गया ये दावा सिर्फ़ एक प्रोपेगेंडा है जिसे अधूरी जानकारी के आधार पर चलाया गया था.

फ़ैक्ट-चेक के अलावा हमने हेट स्पीच के खिलाफ़ बढ़ाया कदम

ऑल्ट न्यूज़ ने इस साल भड़काऊ भाषण देने वाले व्यक्तियों की पहचान कर उनकी जानकारी सम्बंधित सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को देने का काम किया. यति नरसिंहानंद द्वारा दी गई उस हेट स्पीच को लोगों के सामने पेश किया जो यूट्यूब जैसे सार्वजनिक डोमेन में पहले से ही मौजूद थी. लेकिन फिर भी सोशल मीडिया साइट्स अपनी ही पॉलिसी को नज़रअंदाज़ करते हुए हेट स्पीच वाले ऐसे वीडियोज़ पर कार्रवाई नहीं कर पाई. बता दें कि यति नरसिंहानंद ने दिसंबर 2021 में हरिद्वार धर्म संसद में सार्वजनिक मंच से भड़काऊ भाषण दिए थे. इसके बाद पूरे देशभर में यति नरसिंहानंद की हेट स्पीच को लेकर सवाल उठाए जाने लगे और इसी के चलते उन्हें गिरफ़्तार किया गया था. ठीक इसके 2 महीने बाद यति नरसिंहानंद को इस शर्त पर ज़मानत मिली कि वो किसी भी तरह का भड़काऊ भाषण नहीं देंगे. हालांकि, ज़मानत की इन शर्तों का खुलेआम उल्लंघन करते हुए यति नरसिंहानंद ने भड़काऊ भाषण देना जारी रखा. यूट्यूब पर यति नरसिंहानंद के ऐसे कई वीडियोज़ अपलोड किये गए थे जिसमें वो मुस्लिम धर्म के खिलाफ़ हिंदुओं को उकसाते हुए दिखे. ऑल्ट न्यूज़ की डिटेल्ड रिपोर्ट आप यहां पर पढ़ सकते हैं.

इस साल बच्चा चोरी की अफ़वाहों का सिलसिला फिर से देखने को मिला. कई राज्यों से ख़बर आई कि लोगों ने बच्चा चोरी के शक में संदेहजनक व्यक्तियों पर हिंसक हमले किये हैं. ऑल्ट न्यूज़ ने सोशल मीडिया पर बच्चा चोरी की अफ़वाहों को बढ़ावा देने के लिए चलाई गई पेटर्न को समझने की कोशिश की. हमने पाया कि काफी वक़्त से सोशल मीडिया पर बच्चा चोरी के दावे वाले नाटकीय वीडियोज़ शेयर किये जा रहे थे. वहीं यूट्यूब पर हमें कई ऐसे हिंसक वीडियोज़ भी मिले जिसे बच्चा चोरी गिरोह का बताकर शेयर किया गया था.

सद्गुरु के नाम से जाने जानेवाले ईशा फ़ाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव ने 6 जून को ANI को इंटरव्यू देते हुए कहा था कि भारत ने पिछले 5-6 सालों या 10 सालों में “बड़ी” सांप्रदायिक हिंसा नहीं देखी है. उन्होंने कहा था कि देश में ऐसी कोई असहिष्णुता या हिंसा कुछ भी नहीं है. लेकिन जब ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने सद्गुरु के बयान का विश्लेषण किया तो पाया कि उनका बयान NCRB के डेटाबेस से मेल नहीं खा रहा है. सद्गुरु के बयान को लेकर ऑल्ट न्यूज़ का एनेलिसिस आप यहां पर पढ़ सकते हैं.

कुल मिलाकर, साल 2022 खत्म होने को है लेकिन ग़लत ख़बरों का बढ़ना लगातार जारी है. भारत जोड़ो यात्रा अभी भी निशाने पर है और ये संभव है कि नए साल की शुरुआत होते ही इससे जुड़ी ग़लत ख़बरें देखने को मिलें. ऑल्ट न्यूज़ हमेशा ही समाज में सच की मशाल जलाए रखने की कोशिश करता है और आगे भी करता रहेगा. इस साल हमने देखा कि मेनस्ट्रीम मीडिया ने ग़लत जानकारी फ़ैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ऐसी जगह जहां किसी पार्टी के उम्मीदवार मुसलमान थे उनके समर्थकों द्वारा पाकिस्तान समर्थक नारे लगाये जाने का झूठा दावा बार-बार किया गया. जिस तरह से मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, ये काफी चिंताजनक है. और ये सब काम सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स के ग़लत इस्तेमाल से भी हो रहा है जहां बड़ी पहुँच वाले हैंडल्स लोगों के बीच फ़र्ज़ी नैरेटिव बनाने का प्रयास करते दिख रहे हैं.

[नोट: इस आर्टिकल में शामिल आंकड़े, ऑल्ट न्यूज़ द्वारा साल 2022 में पब्लिश की गई उन फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट्स के आधार पर हैं जिसमें हमने मीडिया और प्रमुख व्यक्तियों एवं संगठनों द्वारा गलत सूचनाएं शेयर करने के मामलों को डॉक्यूमेंट किया है.]

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