नवंबर 2019 में जेएनयू की प्रस्तावित फीस वृद्धि को लेकर छात्रों के विरोध प्रदर्शन के इर्द-गिर्द ज़्यादातर भ्रामक सूचनाए फैलाई गई। उसके अलावा सुर्खियों में बने रहे, अयोध्या फैसले पर भी सोशल मीडिया में झूठी अफवाहे प्रसारित की गई।
जेएनयू विरोध-प्रदर्शन के इर्द-गिर्द फैली भ्रामक सूचनाएं
1. JNU विरोध-प्रदर्शन को बदनाम करने के लिए इंटरनेट से लड़कियों की तस्वीरें उठाकर प्रसारित
एक हाथ में शराब की बोतल और दूसरे हाथ में सिगरेट लिए एक युवती की तस्वीर इस दावे के साथ साझा की गई कि वह जेएनयू की छात्रा है। दूसरी लड़की की एक अन्य तस्वीर जिसने अपने बाल कंडोम से बंधे हुए थे, उसे भी जेएनयू की प्रदर्शनकारी छात्रा के रूप में साझा किया गया। इस तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा था, “जेएनयू की गिरावट को इससे बेहतर नहीं बताया जा सकता – बालों को बांधने के लिए कंडोम और नग्न विरोध-प्रदर्शन”। (अनुवाद)
The liquor bottle in her hand apart.. This JNU junkie has 2 packs of “Classic” on the table as she smokes one…Each pack costs 300 bucks.. And these castards are whining about fee hike?… @Timesnow @Indiatoday @Republic @PMOIndia @DrRPNishank @mamidala90 https://t.co/ZgKaLbvB60 pic.twitter.com/sA8pVpEEqF
— Ravinar (@RavinarIN) November 16, 2019
ऑल्ट न्यूज़ ने दोनों तस्वीरों को रिवर्स-सर्च करने पर पाया कि उनका जेएनयू के प्रदर्शनकारियों से कोई संबंध नहीं है। शराब की बोतल वाली महिला की तस्वीर अगस्त 2016 के एक ब्लॉग में साझा की गई थी। जहां तक कंडोम वाली तस्वीर की बात है, ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने इसे दिसंबर 2017 में ट्वीट किया था।
2. 23-वर्षीय छात्र को 45-वर्षीय कांग्रेस नेता और JNU छात्र अब्दुल रज़ा बताया
ऐसे ही एक अन्य उदाहरण में, सोशल मीडिया पर एक तस्वीर प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर निशाना साधने के लिए प्रसारित की गई। दावा किया गया कि ये 45 वर्षीय छात्र, कांग्रेस के नेता अब्दुल रज़ा है, जो अभी भी इस विश्वविद्यालय के छात्र है। तस्वीर के साथ साझा सन्देश में लिखा था कि- “ये JNU का छात्र निकला 45 वर्ष का जानते हैं कौन है अब्दुल रज़ा, कांग्रेस का मण्डल अध्यक्ष कुछ समझे”, और हैशटैग #ShutDownJNU के साथ इसे साझा किया गया था।
45 वर्षीय #अब्दुल_रजा कांग्रेस का #मण्डल_अध्यक्ष भी अभी JNU में पढ़ाई कर रहा हैं।
हद हो गयी यार…😠😠😡#ShutDownJNU pic.twitter.com/97PW0nVKNw— डा.सीमा (@seematri6) November 19, 2019
सोशल मीडिया का दावा, एक बार फिर गलत साबित हुआ। तस्वीर में दिख रहे व्यक्ति जेएनयू में 23 साल की छात्र शुभम बोकाडे थे, जो लिंग्विस्टिक में एमए की पढ़ाई कर रहे हैं। ऑल्ट न्यूज़ के साथ एक बातचीत में, बोकाडे ने कहा,“सबसे पहले, साझा की जा रही पोस्ट गलत है। मेरा सोचना है कि जो दावा प्रसारित किया गया है वह समस्यात्मक है। यह स्पष्ट रूप से इस्लामोफोबिया है। दूसरी बात यह कि अगर मैं दावे के मुताबिक 45 वर्षीय अब्दुल रज़ा हूं, तो भी सवाल यह है कि एक 45 वर्षीय व्यक्ति के लिए सस्ती कीमत पर शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश करना क्या गलत है। शिक्षा का विचार विश्वविद्यालय को सर्वश्रेष्ठ बनाने से ज़्यादा शिक्षा को हर एक व्यक्ति तक पहुंचाने का है।” (अनुवाद)
3. मुहर्रम के जुलुस में घायल महिला की तस्वीर JNU विरोध-प्रदर्शन के दावे से साझा
एक युवती, जिसके सिर से खून बहते हुए दिख रहा है, उसकी तस्वीर को सोशल मीडिया में सरकार पर निशाना साधते हुए प्रसारित किया गया। देश की राजधानी में छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हुई थी, जिसमें 15 छात्र घायल हुए थे। इस तस्वीर को इसी झड़प के संदर्भ से साझा किया गया था।
उपरोक्त तस्वीर भारत की नहीं है। शिया न्यूज़ वेबसाइट JafariyaNews.com द्वारा फरवरी 2005 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, ये तस्वीरें मुहर्रम के दसवें दिन यानि कि आशूरा के दिन को होने वाले एक जुलुस को दर्शाती हैं। इसलिए, यह कहना कि यह तस्वीर फीस वृद्धि पर छात्रों के हाल के विरोध प्रदर्शन के दौरान ली गई थी, गलत है।
4. CPI नेता की तस्वीर पुलिस द्वारा हिरासत में ली गई JNU छात्रा के रूप में वायरल हुई
एक बुज़ुर्ग महिला की तस्वीर फेसबुक और ट्विटर पर व्यापक रूप से इस दावे से साझा की गयी कि वह महिला जेएनयू की छात्रा हैं। इसके साथ साझा किये गए सन्देश का लहज़ा व्यंग्यात्मक था।
A final year student from JNU got arrested. Fascist Modi#ShutDownJNU #JNUWallOfShame #JNUFreebies #JNUProtests pic.twitter.com/AAEq6Imtf8
— Amaresh Ojha 🇮🇳 (@Amreso99) November 18, 2019
पड़ताल में यह मालूम हुआ कि तस्वीर में दिख रही महिला जेएनयू की छात्रा नहीं, बल्कि सीपीआई नेता एनी राजा हैं। एनी राजा की ये तस्वीर तब ली गई थी जब वह और उनके जैसी अन्य महिलाऐं पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को यौन उत्पीड़न के आरोपों से क्लीनचीट देने को लेकर मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था।
ऐसे ही कुछ अन्य उदाहरणों के लिए पाठक ऑल्ट न्यूज़ के इस संकलन लेख को पढ़ सकते हैं।
अयोध्या फैसले के इर्द-गिर्द भ्रामक सूचनाएं
1. अयोध्या फैसले पर पूर्व CJI को पीएम मोदी द्वारा लिखा गया बधाई पत्र के रूप में एडिटेड पत्र शेयर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को लिखा गया एक कथित पत्र सोशल मीडिया में प्रसारित है। अंग्रेजी भाषा में लिखा गया यह पत्र 11 नवंबर का है और इसमें लिखा गया है कि, “प्रिय मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, मैं इस पत्र की शुरुआत आपको और आपकी पीठ के न्यायमूर्ति एस. ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नज़ीर को हिंदू राष्ट्र के लिए आपके शानदार योगदान के लिए बधाई देने से करता हूं। आपके सराहनीय और यादगार निर्णय के लिए, जो हिंदू राष्ट्र के लिए एक नया इतिहास बनाएंगे, हिंदू हमेशा आपके और आपकी पीठ के आभारी रहेंगे। मैं आपको और आपके परिवार को आपके भविष्य के प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं और एक बार फिर से आपको इस उल्लेखनीय निर्णय के लिए बधाई देता हूं। इस महत्वपूर्ण समय में अद्भुत समर्थन के लिए धन्यवाद।” (अनुवाद)। यह पत्र सोशल मीडिया, मुख्य रूप से व्हाट्सएप पर, प्रसारित हुआ था।
कई विसंगतियां हैं जो निर्णायक रूप से यह स्थापित करती हैं कि उपरोक्त पत्र एडिट किया हुआ है। इस पर लिखे गए ऑल्ट न्यूज़ के विस्तृत तथ्य-जांच लेख को यहाँ पढ़ें।
2. झूठा दावा: तिरुपति बालाजी ने अयोध्या में राम मंदिर के लिए 100 करोड़ रुपये दान दिए
अयोध्या मामले पर आये फैसले के बाद, सोशल मीडिया में यह दावा किया गया कि तिरुमाला तिरुपति बालाजी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 1 अरब रुपये (100 करोड़) का दान करेगा। उत्तर प्रदेश के टीवी चैनल भारत समाचार के प्रसारण के एक स्क्रीनग्रैब को कई व्यक्तियों ने साझा किया, जिसने इस दावे को विश्वसनीयता प्रदान की।
ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) द्वारा राम मंदिर के निर्माण के लिए 100 करोड़ रुपये दान करने का दावा, गलत है। उपरोक्त संगठनों द्वारा बताई गई खबरों की सत्यता के संबंध में एक ईमेल के जवाब में, TTD के पीआरओ कार्यालय ने कहा, “कृपया ध्यान दें कि यह एक नकली खबर है।”(अनुवाद) इससे यह स्पष्ट होता है कि मंदिर द्वारा दान देने की ऐसी कोई घोषणा मंदिर अधिकारियों ने नहीं की थी।
3. अयोध्या मामले को लेकर सोशल मीडिया की निगरानी करने की चेतावनी देने वाला फ़र्ज़ी वायरल सन्देश
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले, व्हाट्सएप पर गलत सूचनाएं और अफवाहें फैलाई गईं। एक वायरल सन्देश में बताया गया कि आगामी अयोध्या केस के मद्देनज़र सार्वजनिक संचार की नई व्यवस्था लागू की जाएगी। सन्देश में कहा गया है कि सभी कॉल को रिकॉर्ड किया जायेगा और कॉल की रिकॉर्डिंग को सेव किया जायेगा। ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर नज़र रखी जाएगी, व्हाट्सएप भी इसमें शामिल है। इसमें आगे लिखा है कि आपकी सभी निजी डिवाइस को मंत्रालय सिस्टम से जोड़ दिया जायेगा। सन्देश में आगे चेतावनी दी गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या सरकार के विरुद्ध किसी भी पोस्ट या वीडियो को फॉरवर्ड ना करें।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने ट्विटर के ज़रिये यह स्पष्ट किया कि प्रसारित किया गया सन्देश अफवाह है। अयोध्या में प्रसारित ऐसे ही कुछ संदेशो में से यह एक और उदाहरण है। 5 नवंबर को अयोध्या पुलिस ने अपने ट्विटर अकाउंट से अख़बार में छपे एक लेख को ट्वीट किया था, जिसके शीर्षक के अनुसार, “सोशल मीडिया के माध्यम से अशांति फ़ैलाने की हो रही है नाकाम कोशिश।” उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसे हैशटैग #UPPAgainstFakeNews के साथ ट्वीट किया था।
4. ब्रिटिश लाइब्रेरी के संग्रहालय में रखी गई बाबरी मस्जिद की तस्वीरों के रूप में असंबंधित तस्वीरें वायरल
तस्वीरों का एक कोलाज सोशल मीडिया में इस दावे के साथ वायरल किया गया कि ये ब्रिटिश लाइब्रेरी के संग्रह से ली गई बाबरी मस्जिद की तस्वीरें हैं। सभी तस्वीरें ब्लैक एंड व्हाइट थी। ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि ये तस्वीरें कई सालों से ऑनलाइन प्रसारित हैं।
— Shaykh Abdul Raheem (@ShkhAbdulRaheem) November 10, 2019
ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी तथ्य-जांच में पाया कि एक तस्वीर को छोड़कर, बाकि कि सभी तस्वीरें ध्वस्त हो चुकी बाबरी मस्जिद की नहीं हैं। ये तस्वीरें कर्नाटक, अफगानिस्तान और तुर्की की मस्जिदों और मकबरों को दर्शाती हैं। ऐसे ही एक अन्य उदाहरण में, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक की तस्वीरों को बाबरी मस्जिद की तस्वीरों के रूप में साझा किया गया था।
डेंगू को लेकर गलत जानकारी
हर साल की तरह, गर्मी के मौसम खत्म होने के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में डेंगू जैसी मच्छर-जनित बीमारियों के मामले बढ़ गए हैं। पिछले वर्षों की तुलना में इस साल यह महामारी अधिक समय तक रही है। 10 नवंबर 2019 को दिल्ली के अस्पताल में 16-वर्षीय लड़की की डेंगू के कारण मृत्यु हो गयी थी। इसके कारण डेंगू को लेकर सोशल मीडिया में गलत सूचनाए प्रसारित हुई।
1. गलत दावा: यूपोरियम परफोलिएटम का होम्योपैथिक उपचार डेंगू को रोक/ठीक कर सकता है
व्हाट्सएप के फॉरवर्ड-संदेशों, यूट्यूब वीडियो और सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ने दावा किया कि होम्योपैथिक दवा यूपोरियम पेरिफोलिएटम (EP) डेंगू संक्रमित आबादी व इसके बड़े जोखिम को रोक कर, उसके लिए उपचारात्मक है। ऑल्ट न्यूज़ को सरकारी संगठनों द्वारा मरीज़ो को यूपोरियम परफोलिएटम दिए जाने की, मुख्यधारा मीडिया संगठनों की कई खबरें मिलीं। (1, 2, 3, 4)
हालांकि, यह दावा गलत था। ऑल्ट न्यूज़ की पूर्ण तथ्य-जांच यहां पढ़ें।
2. गलत दावा: नारियल तेल डेंगू वायरल संक्रमण से बचाता है
दावा किया गया कि नारियल का तेल लगाना इसके एंटीबायोटिक गुणों के कारण डेंगू संक्रमित मच्छर के काटने से सुरक्षात्मक हो सकता है। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप जैसे मेसेजिंग एप्लिकेशन पर वायरल एक सन्देश के अनुसार एक डॉक्टर बी सुकुमार डेंगू को रोकने के लिए नारियल तेल लगाने की सलाह देते हैं।
Prevention is better than cure ♥️ pic.twitter.com/q6q0JvKokW
— thaman S (@MusicThaman) October 11, 2017
नारियल का तेल एंटीवायरल यौगिक नहीं है और इसका उपयोग डेंगू संक्रमण या डेंगू-मच्छर के काटने से रक्षा नहीं करेगा। ऑल्ट न्यूज़ की विस्तृत तथ्य-जांच यहां पर पढ़ें।
3. गलत दावा: कैरिका पपीता का अर्क या ‘कैरिपिल’ से डेंगू वायरस संक्रमण ठीक होता है
इस साल डेंगू के मामलों में वृद्धि के साथ ही, पपीते के पत्तों की एक तस्वीर के साथ 2012 की एक फेसबुक पोस्ट फिर से वायरल हुई है। पहली बार इसे पोस्ट किये जाने से अबतक इसे 9,95,000 शेयर किया गया है। इस फेसबुक पोस्ट में टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख को इस सूचना का स्रोत बताया गया है, और सुझाव दिया गया है कि पपीते के पत्तों के रस से डेंगू का चमत्कारिक इलाज हो सकता है।
It could be a miracle cure for dengue. And the best part is you can make it at home. (apologies for the typo in the…
Posted by Health Digest on Tuesday, 30 October 2012
हालांकि, यह दावा भी झूठा है। ऑल्ट न्यूज़ की विस्तृत पड़ताल को आप यहां पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
फोटोशॉप तस्वीरें, झूठे उद्धरण
1. कपिल सिब्बल के नाम से फ़र्ज़ी बयान: “जब तक ज़िंदा हूँ, राममंदिर नहीं बनने दूंगा”
सोशल मीडिया में कांग्रेस राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल के हवाले एक बयान वायरल हुआ था। बयान के अनुसार, “जब तक जिंदा हूँ, राम मंदिर नहीं बनने दूँगा – कपिल सिब्बल।” ऐसा ही एक समान बयान 2017 से सोशल मीडिया में चल रहा है। ट्विटर पर ऑल्ट न्यूज़ को इस बयान के प्रसारित होने के सबसे पहले उदाहरण मिले, जिसके मुताबिक, “कपिल सिब्बल: अगर तीन तलाक ख़त्म हुआ तो राम मंदिर नहीं बनने दूंगा।”
गूगल सर्च करने से हमें कपिल सिब्बल के इस बयान पर आधारित हालिया या पहले प्रकाशित किया गया कोई समाचार लेख नहीं मिला। यह असंभव है कि मीडिया इस तरह के किसी विवादास्पद बयान के बारे में खबर प्रकाशित ना करे, जबकि बयान विपक्ष के एक प्रमुख नेता ने दिया हो। इसके अलावा, उपयोगकर्ताओं द्वारा साझा किये जा रहे स्क्रीनशॉट से हम एक संदेहपूर्ण वेबसाइट digitalindiatv.com तक पहुंचे, जिसने 15 मार्च, 2018 को सिब्बल के नाम से यह बयान साझा किया था। ऑल्ट न्यूज़ की तथ्य-जांच यहां पर पढ़ी
जा सकती है।
2. बुर्ज खलीफा को लेकर शाहरुख खान पर निशाना साधने वाली NDTV इंडिया की फोटोशॉप रिपोर्ट
“ये क्या हो गया सच्चा मुसलमान कभी ऐसा नही कर सकता तो इसका मतलब क्या समझा जाये शाहरुख खान सच्चे मुसलमान नही है ओ भी मात्र दो करोड़ रुपये के लिए ..! #ShahRukhKhanBirthday”
उपरोक्त संदेश ट्विटर पर NDTV इंडिया के एक लेख के स्क्रीनशॉट के साथ साझा किया गया है। लेख का शीर्षक है –“2 करोड़ में लिखवाया बुर्ज खलीफा पर अपना नाम। पैसे देने की बारी आयी, अब फ़ोन नहीं रिसीव कर रहे शाहरुख़ खान।”
NDTV इंडिया के शीर्षक को फोटोशॉप किया गया है। इस तस्वीर की वास्तविकता जांचने के लिए, ऑल्ट न्यूज़ ने NDTV इंडिया की वेबसाइट को खंगाला और शाहरुख खान से संबंधित एक रिपोर्ट पाई जो उनके जन्मदिन पर प्रकाशित की गई थी। NDTV इंडिया की वेबसाइट पर मिली रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘शाहरुख खान के रंग में रंगा दुबई का ‘बुर्ज खलीफा’, देखने पहुंची लोगों की भारी भीड़…देखें वायरल Video’।
नीचे की तस्वीरों में, NDTV इंडिया की वास्तविक रिपोर्ट और वायरल स्क्रीनशॉट के बीच अंतर को साफ तौर पर देखा जा सकता है।
3. भारतीय राज्यों को पाकिस्तान के हिस्से के रूप में दर्शाते नक्शे के साथ कन्हैया कुमार की तस्वीर वायरल
CPI नेता और JNUSU के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल है। इस तस्वीर में कुमार को एक नक़्शे के आगे भाषण देते हुए देखा जा सकता है, जिसमें भारत के कुछ राज्यों को पाकिस्तान के एक हिस्से के रूप में दर्शाया गया है। इसके साथ साझा किये गए सन्देश के अनुसार – “इस कुत्ते के पीछे भारत का नक्शा देखो यह जेएनयू में पलने वाला कुत्ता है भड़वा है और इस देशद्रोही को पलवल आने का न्योता दो इसका इलाज पलवल में ही संभव हो पाएगा।”
इस तस्वीर को गूगल रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें मूल तस्वीर मिली, जिसमें भारत के कुछ राज्यों को पाकिस्तान का हिस्सा दर्शाने वाला नक्शा नहीं दिख रहा है। पीछे पृष्भूमि में कुछ भी नहीं दिख रहा है। द हिंदू ने इस तस्वीर को 2015 के लेख में शामिल किया था, जिसमें तस्वीर का श्रेय फोटोग्राफर संदीप सक्सेना को दिया गया है।
कश्मीर पर भड़काऊ भ्रामक सूचनाएं
1. बिहार का वीडियो, कश्मीरी मुस्लिम बच्चे की पीड़ा से मौत होने के दावे से साझा
12 नवंबर, 2019 को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद का 100वां दिन था। उस दिन सोशल मीडिया में एक वीडियो इस संदेश के साथ साझा किया गया, “आरएसएस के हिंदुत्व नाज़ी गुंडों ने एक कश्मीरी बच्चे की मौत होने तक उसे प्रताड़ित किया है। मेरा सवाल पश्चिमी नेताओं से है: क्या आप अपने बच्चों के साथ ऐसा करने की अनुमति देंगे? क्या कोई समझदार व्यक्ति इसे उचित मानेगा? #100DaysOfKashmirSiege” (अनुवाद)। इस वीडियो में एक लड़के को जमीन पर गिराकर बेरहमी से पीटते हुए देखा जा सकता है।
A Kashmiri Muslim child has just been tortured to death by RSS Hindutva Nazi goons. My question to western leaders: would you allow this to happen to your children & silently spectate? Can any sane mind justify this? #100DaysOfKashmirSiege pic.twitter.com/dsS3kuCY5C
— Suhaib Saqib (@SuhaibSaqib1) November 12, 2019
यह वीडियो कश्मीर का नहीं है। ऑल्ट न्यूज़ ने इस वीडियो की पड़ताल अक्टूबर 2019 में अपने एक लेख, “बिहार में हत्या के आरोपी की बेरहमी से पिटाई; पुलिस ने किया सांप्रदायिक मामले से इनकार” में की थी। यह घटना 2 अक्टूबर, 2019 को बिहार के कैमूर जिले के भभुआ नगर में हुई थी।
2. गलत दावा: हज़रतबल में पिछले वर्षों की तरह उत्साह से मनाया ईद-ए-मिलाद
9-10 नवंबर को कश्मीर के धर्मस्थल हजरतबल में पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर ईद मिलाद-उन-नबी मनाया गया। एक ओर जहां स्थानीय समाचार संगठनों के साथ द हिंदू और पीटीआई ने खबर दी कि बड़ी सभा को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए गए थे, वहीं टाइम्स नाउ और दूरदर्शन सहित मीडिया के एक वर्ग समेत कुछ प्रमुख पत्रकारों ने दावा किया कि इस अवसर पर हज़ारों लोग इकट्ठा हुए थे, और इन लोगों के इक्क्ठा होने पर कोई प्रतिबंध नहीं था।
Thousands prayed at Hazratbal and holy Relic Moi-e-Muqaddas was displayed as per tradition at holy Hazratbal shrine in #Srinagar. Disinformation was spread that prayers were not allowed on 10 November#FakeNews pic.twitter.com/vUD72hqN7m
— Doordarshan News (@DDNewsLive) November 12, 2019
उल्लेखनीय है कि प्रमुख मीडिया संगठनों और पत्रकारों ने दावा किया था कि नमाज़ की अनुमति नहीं होने की गलत सूचनाएं फैलाई गई थीं। हालांकि, यह गलत है। ईद मिलाद पर रिपोर्ट करने वाले समाचार संगठनों ने लिखा है कि नमाज़ पर “सीमित प्रतिबंध” था, पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया गया था। अगर कोई 10 नवंबर 2019 की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तस्वीरों की तुलना पिछले वर्षों में हज़रतबल के इस समान समारोहों से करे, तो इकट्ठा लोगों की संख्या में भारी अंतर स्पष्ट नज़र आता है। नीचे की तस्वीर में, पहली तस्वीर हालिया समारोहों को दर्शाती है, दूसरी 2016 की है; तीसरी तस्वीर 2011 और चौथी तस्वीर 2014 की है। ऑल्ट न्यूज़ की विस्तृत तथ्य-जांच रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।
3.गाज़ा में गोलियों से छलनी मकान की पुरानी तस्वीर, कश्मीर के दावे से साझा
आप इस कश्मीरी मकान की तस्वीर देखकर कश्मीर के हालात का अंदाजा लगाईये।
उपरोक्त सन्देश एक तस्वीर के साथ सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें एक इमारत दिखाई दे रही है जिसकी दीवारें गोलियों से छलनी हैं।
इस कश्मीरी मकान की तस्वीर देखकर कश्मीर के हालात का अंदाजा लगाईये ।
Posted by रख्शन्दा खान on Thursday, 31 October 2019
यह तस्वीर कश्मीर की नहीं, गाज़ा की है। ऑल्ट न्यूज ने इसे यांडेक्स पर रिवर्स सर्च किया तो हमें वेबसाइट www.radikal.com पर 3 जनवरी, 2010 को प्रकाशित एक रिपोर्ट मिली। तस्वीर के साथ पोस्ट किए गए विवरण में कहा गया है कि गाज़ा में इज़रायली सेना की बमबारी के एक साल बाद भी कुछ नहीं बदला था। 27 दिसंबर, 2009 को यह क्षेत्र और यहां के बच्चे इस्राइली हमले से सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।
साम्प्रदायिक भ्रामक सूचनाएं
1. बिहार में सासाराम की मस्जिद में विस्फोट, 100 बम मिलने का गलत दावा
नवंबर की शुरुआत में, बिहार के सासाराम में एक मस्जिद के पास विस्फोट हुआ। इसके तुरंत बाद, सोशल मीडिया में एक दावा व्यापक रूप से प्रसारित किया गया कि विस्फोट मस्जिद के अंदर हुआ जहां से एक सौ अन्य बम भी बरामद किए गए है। प्रसारित सन्देश के मुताबिक, “आज सासाराम में मोची टोला मोहल्ला मस्जिद में बम बनाते ब्लास्ट हुआ 100 की संख्या में बम बारूद गिरफ्तार हुआ इस तरह का लगभग मस्जिद में काम काम चल रहा है सासाराम रोहतास बिहार।”
ऑल्ट न्यूज़ ने सासाराम के एसडीओ राज कुमार गुप्ता से सम्पर्क किया, जिन्होंने बताया कि सोशल मीडिया में प्रसारित दावे “सिर्फ अफवाहें” हैं। अधिकारी ने बताया कि यह विस्फोट मस्जिद के अंदर नहीं, बल्कि पूजा स्थल के बाहर एक परिसर में हुआ था। यह बताते हुए कि पुलिस अभी मामले की जांच कर रही है, उन्होंने कहा- “एक ही धमाका हुआ जिसमें एक मज़दूर घायल हो गया था। हमने घटनास्थल से कोई अन्य विस्फोटक नहीं बरामद किया है।”
2. रोहिंग्या शरणार्थी की पुरानी तस्वीरअयोध्या में दिए में से तेल निकाल रही लड़की के रूप में वायरल
अयोध्या में दीपोत्सव कार्यक्रम के तुरंत बाद, जिसमें 5 लाख से अधिक दीपक या दिए जलाए गए थे, एक वीडियो सोशल मीडिया में व्यापक रूप से प्रसारित होने लगा, जिसमें एक बच्ची को दीयों से तेल इकट्ठा करते हुए दिखाया गया। इसके बाद सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने दावा किया कि वह लड़की रोहिंग्या मुस्लिम थी। इसके साथ एक छोटी लड़की की एक अन्य तस्वीर इस दावे के साथ साझा की गई कि यह वही लड़की है जिसे अयोध्या में देखा गया था। प्रसारित सन्देश इस प्रकार है- “इस अवैध रोहींगया लड़की को वाम और सेकुलर गैंग ने एक षड़यंत्र के तहत अयोध्या पहुंचाया ज़िससे एक झूठा प्रोपेगैंडा फैलाय़ा जा सके , अरे बेशर्मो तुम्हारा प्लान फेल हो गया” फेल हो गया (वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष गिरोह इस अवैध रोहिंग्या लड़की को अयोध्या के माध्यम से लाया। साज़िश की ताकि एक गलत दावा फैलाया जा सके।)”
ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि उपरोक्त तस्वीर दो साल पहले बांग्लादेश में खींची गई थी जिसमें 6 सितंबर, 2017 को म्यांमार से भागी रोहिंग्या शरणार्थी लड़की को दिखाया गया है। साथ ही, इस लड़की और अयोध्या में देखी गई लड़की के चेहरे की तुलना करने पर स्पष्ट दिखाई देता है कि दोनों लड़कियां अलग हैं। उनके चेहरे की अलग-अलग विशेषताएं हैं- आंखों का रंग, नाक, होंठ।
3. पंजाब में फहराए गए इस्लामिक झंडे का वीडियो पाकिस्तानी झंडे के रूप में साझा
जालंधर, पंजाब में कई इमारतों की छतों पर फहराए गए झंडों का एक वीडियो सोशल मीडिया में इस दावे के साथ साझा किया गया कि ये पाकिस्तानी राष्ट्रीय ध्वज थे। वीडियो में, एक आदमी को इस क्षेत्र को “मिनी पाकिस्तान” कहते हुए सुना जा सकता है। ट्विटर हैंडल @noconversion ने एक सन्देश के साथ यह वीडियो पोस्ट किया, “पाकिस्तानी झंडे … जालंधर पंजाब में, इस क्षेत्र विजय कॉलोनी ईसाई मिशनरियों से प्रभावित है।” (अनुवाद )
Pakistani flags … in Jalandhar Punjab , this area Vijay Colony is infested with Christian Missionaries @AmitShah @SureshChavhanke @rohitsardaana @ZeeNews @aajtak @amitmalviya pic.twitter.com/GMqn4owAN5
— No Conversion (@noconversion) November 6, 2019
गूगल पर कीवर्ड सर्च करने से, हमें दैनिक भास्कर का 4 नवंबर, 2019 को प्रकाशित एक लेख मिला। 4 नवंबर को, पुलिस जालंधर की विजय कॉलोनी में एक स्थानीय शिवसेना नेता के साथ पहुंची, जिसने सूचना दी कि मुस्लिम समुदाय कथित रूप से पाकिस्तानी झंडे लहरा रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार, निवासियों द्वारा झंडे हटा दिए गए थे, फिर भी, बाद में एक विरोध-प्रदर्शन किया गया। मुस्लिम समुदाय ने यह स्पष्ट किया कि वे झंडे, पाकिस्तानी झंडे नहीं, “इस्लामी धार्मिक झंडे” थे। इसके के बाद, पुलिस को उनकी गलतफहमी का एहसास हुआ और झंडे पुलिस के निर्देश के तहत फिर से लहराए गए।
नीचे की तस्वीर में, दोनों झंडों के बीच के अंतर को साफ देखा जा सकता है।
4. यूपी के घायल इमाम की तस्वीरें, ‘संघियों’ द्वारा किये हमले के गलत दावे से साझा
एक घायल आदमी की तस्वीरों का एक समूह सोशल मीडिया में इस दावे के साथ साझा किया गया है कि लखनऊ में एक मस्जिद के इमाम पर “संघियों-बजरंगियों” ने हमला किया। तस्वीरों में दिखाई दे रहे व्यक्ति के सिर और दाहिने हाथ पर पट्टी बंधी है। वह खून से लथपथ बनियान पहने हुए बैठा है। इन तस्वीरों के साथ प्रसारित सन्देश इस प्रकार है- “नफ़रतों की इन्तिहा हो गई कायर संघियों। 11 बजे रात में लखनऊ में जेल रोड पर बनी मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ अदनान साहब पर नीच, कायर संघियों-बजरंगियों ने तलवार से जानलेवा हमला किया।”
नफ़रतों की इन्तिहा हो गई कायर संघियों।
11 बजे रात में लखनऊ में जेल रोड पर बनी मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ अदनान साहब पर नीच, कायर संघियों-बजरंगियों ने तलवार से जानलेवा हमला किया।
अल्लाह ने हिफ़ाज़त फ़रमाई।। pic.twitter.com/Krx9HgwLMk— सत्यवाणी शैदा हुसैन (3.3k) (@ShaidaHussain2) October 29, 2019
हालांकि, सोशल मीडिया का दावा, गलत है। यह मामला लूट की असफल कोशिश की घटना का था। ऑल्ट न्यूज़ की पूर्ण तथ्य-जांच यहां पढ़ी जा सकती है।
5. झूठा दावा: मुस्लिम दल हाल के चुनावों के बाद बेल्जियम को इस्लामिक राज्य घोषित करना चाहते हैं
रूसी टेलीविजन RT का एक समाचार क्लिप सोशल मीडिया में इस दावे के साथ वायरल था कि बेल्जियम में चुनाव जीतने के बाद मुस्लिम दल देश को एक इस्लामिक राज्य के रूप में स्थापित करने की मांग कर रहे हैं। फ़र्ज़ी समाचार वेबसाइट पोस्टकार्ड न्यूज़ के संस्थापक महेश विक्रम हेगड़े ने यह लिखते हुए इस वीडियो को ट्वीट किया, “चुनाव जीतने के बाद, मुस्लिम दल बेल्जियम को इस्लामिक देश घोषित करने की मांग कर रहे हैं। बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। भारत में भी जल्द ही ऐसा होने जा रहा है। मेरे प्यारे तथाकथित “सेक्यूलर” भाईयों और बहनों को शुभकामनाएं।”
After winning elections,
Muslim parties demanding to declare Belgium as Islamic country.
Huge protests have already started
This is what going to happen soon in india also
All the best to my beloved so called “SECULAR” brothers and sisters pic.twitter.com/6CQZgP1FYh— Mahesh Vikram Savarkar (@mvmeet) November 2, 2019
ऑल्ट न्यूज़ ने पाया कि यह वीडियो क्लिप 2012 की है। RT की 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2012 में नव-स्थापित ‘इस्लाम पार्टी’ ने बेल्जियम के नगरपालिका चुनावों में दो सीटें जीतीं और शरिया कानून को लागू करने की कसम खाई। पार्टी ने राजधानी ब्रसेल्स की दो सीटें – मोलेनबीक और एंडलेच जीती थीं। हालांकि, वे 2018 में दोनों सीटें हार गई।
विविध
1. बाल ठाकरे की बहन, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले की सास होने का गलत दावा
महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के गठन के तुरंत बाद, सोशल मीडिया में वायरल एक संदेश में दावा किया गया कि सुप्रिया सुले बाल ठाकरे की बहन की पुत्रवधु हैं। व्हाट्सएप पर वायरल हुए इस सन्देश के अनुसार – “बालासाहेब ठाकरे की बहन सुधा भालचंद्र सुले हैं, जो सदानंद सुले की माँ हैं, जो सुप्रिया सुले के पति हैं, जो शरद पवार की बेटी हैं। अब आप राजनीति को समझ गए होंगे”। (अनुवाद) सुप्रिया सुले महाराष्ट्र के बारामती निर्वाचन क्षेत्र से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद हैं।
कुछ मीडिया संगठनों ने भी यह समान खबर प्रकाशित की।
हमनें अपनी पड़ताल में पाया कि यह दावा कि एनसीपी नेता सुप्रिया सुले की सास बाल ठाकरे की बहन हैं, झूठा है। सुप्रिया सुले की सास का नाम ऐनी सुले है न कि सुधा सुले जैसा कि सोशल मीडिया में दावा किया गया। ऑल्ट न्यूज़ की विस्तृत तथ्य-जांच को यहां पढ़ा जा सकता है।
2. नहीं, गौतम गंभीर ने नहीं कहा कि क्रिकेट कमेंट्री प्रदूषण पर बहस करने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है
हाल ही में, पूर्व क्रिकेटर और भाजपा सांसद गौतम गंभीर के खिलाफ सोशल मीडिया में एक बयान आया था कि वह, दिल्ली में बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर शहरी विकास मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति द्वारा निर्धारित एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग नहीं ले पाए थे, क्योंकि उन्हें भारत बनाम बांग्लादेश टेस्ट सीरीज के लिए क्रिकेट कमेंट्री करनी थी।
सोशल मीडिया यूज़र्स द्वारा ट्वीट किए गए आठ सेकेंड के वीडियो में, ANI के रिपोर्टर ने सवाल किया कि, “आप मीटिंग के लिए क्यों नहीं आए?”, जिसके लिए गंभीर ने जवाब दिया “मीटिंग महत्वपूर्ण है या मेरा काम महत्वपूर्ण है? पिछले पांच महीने में मैंने..”
Delhiites ; Listen what your MP is asking –
Pollution पर बैठक ज़रूरी है
या Cricket Commentary ?
×× Next time, before Voting for Celebs, Think Twice ! pic.twitter.com/NTaqRUg1bq— Aarti (@aartic02) November 18, 2019
प्रसारित वीडियो में 18 नवंबर को ANI को दिए गए 90 सेकंड के साक्षात्कार में से केवल आठ-सेकंड के हिस्से को दर्शाया गया है। इसके अलावा, वीडियो को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया, क्योंकि इसमें ‘मेरा काम’ वाक्यांश को गंभीर के व्यक्तिगत काम के रूप में चित्रित किया गया है। सोशल मीडिया के दावे का उद्देश्य यह दिखाना है कि गंभीर ने कहा कि उनके व्यक्तिगत कार्य या व्यवसाय अनुबंध एक सांसद के रूप में उनके कर्तव्यों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। ऑल्ट न्यूज़ की विस्तृत तथ्य-जांच को यहां पर पढ़ें।
3. मीडिया की गलत खबर: आतिश तासीर ने OCI रद्द किए जाने को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
गृह मंत्रालय ने हाल ही में पत्रकार आतिश तासीर को उपलब्ध भारत के प्रवासी नागरिक (OCI) का कार्ड रद्द कर दिया था। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टाइम पत्रिका में कवर स्टोरी लिखी थी। हाल के घटनाक्रम में, मुख्यधारा के मीडिया संगठनों – ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक टीवी, वनइंडिया – ने बताया कि तासीर ने सरकार की कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख अपनाया है। रिपब्लिक टीवी की रिपोर्ट अब हटा ली गई है।
ब्रिटिश नागरिक और लेखक #AatishTaseer ने #SupremeCourt का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया (#OCI) कार्ड वापस लेने के सरकार के फैसले को चुनौती दी है. दरअसल, पिछले हफ्ते ही सरकार ने आतिश तासीर का ओसीआई कार्ड वापस ले लिया था.#ZeeHindustan
— ZEE HINDUSTAN (@Zee_Hindustan) November 22, 2019
आतिश तासीर ने ज़ी न्यूज़ की रिपोर्ट को उद्धृत करते हुए ट्वीट करते हुए इस दावे को “गलत खबर” बताया। ऑल्ट न्यूज़ के साथ बात करते हुए, पत्रकार और लेखक, तासीर ने कहा, “हमने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं की है। हम अभी भी अपनी कानूनी रणनीति तैयार करने की प्रक्रिया में हैं।”(अनुवाद)
4. भाजपा का झूठा दावा, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने तृणमूल कांग्रेस द्वारा आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन के खिलाफ चुनाव आयोग में अपनी पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई द्वारा दायर शिकायत की एक प्रति ट्वीट की है। यह शिकायत 25 नवंबर को राज्य में होने वाले उपचुनाव के संबंध में थी। भाजपा ने आरोप लगाया कि थानापारा के थाना प्रभारी सुमित कुमार घोष नादिया जिले में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा घर-घर प्रचार में नियमित रूप से भाग लेते रहे हैं।
करीमपुर उपचुनाव के लिए #TMC हर तरह के हथकंडे अपना रही है। पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा के साथ थानापारा की थाना प्रभारी सुमित कुमार घोष नियमित रूप से चुनाव प्रचार करते नजर आ रहे है। ऐसा लग रहा है कि #WestBengal पुलिस #TMC में शामिल हो गई है। pic.twitter.com/FCH27WOSCc
— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) November 11, 2019
यह दावा झूठा निकला, क्योंकि विचाराधीन तस्वीर 18 अगस्त, 2019 की है। इसे महुआ मोइत्रा ने अपने फेसबुक पेज पर भी शेयर किया था। PRS के अनुसार, “आदर्श आचार संहिता चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की तारीख से लेकर परिणाम घोषित होने की तारीख तक लागू होती है।” (अनुवाद) पश्चिम बंगाल में नवंबर के उपचुनाव के लिए चुनाव की तारीखों की घोषणा 25 अक्टूबर को की गई थी।
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